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वर्तमान परिपेक्ष्य में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्त्व

प्राकृतिक चिकित्सा भारत की अतिप्राचीन चिकित्सा पद्धतियो में से एक महत्वपूर्ण पद्धति है | जिससे आज सम्पूर्ण विश्व हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति का लोहा मान चुका है | जिसका सबसे बड़ा कारण यह है की वर्षो पूर्व जो निष्कर्ष प्राकृतिक चिकित्सको/आचार्यो ने निकाला उनका वर्तमान समय में वैज्ञानिक पुष्टिकरण भी सही साबित हो रहा है |  

image credit – swadeshi upchar

वर्तमान समय में आधुनिक चिकित्सा इतनी प्रचारित हो चुकी है की हम हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धतियों को भूल से गये है | आधुनिक चिकित्सा के दुष्प्रभावो से दुखी होकर वर्तमान समय में एक बार फिर से हमे हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद, नेचुरोपैथी आदि की याद आने लगी है और अपनाने लगे है जो की हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मील का पत्थर साबित हो रही है | वर्तमान समय में आधुनिकता की मार ने हमे रोगों रुपी जाल में लाकर के खड़ा कर दिया है जहा से निकलना बहुत मुश्कित हो गया है |

वर्तमान समय में इन्सान आधुनिकता की जंजीरों में इतना जकड़ चुका है , जिसके कारण विभिन्न रोगों को आमंत्रण स्वत: ही मिल जाता है जैसे आधुनिक जीवन शैली , आधुनिक रहन-सहन , यहा तक की आधुनिक तरीके के ही विचार निकल के सामने आते है जिनका सीधा-सीधा दुष्प्रभाव उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिल जाता है | वर्तमान समय में फिर से आधुनिक चिकित्सा के दुष्प्रभावो के फलस्वरूप जब कही कोई उपचार से रोग निदान संभव नही हो पाता है तब कही जाकर भुला भटका प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लेते है और अंततः प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा स्वास्थ्य लाभ ले पाते है |

दुनिया भर के सभी देशो द्वारा हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति को अपनाने के अलावा कोई और विकल्प नजर नही आरहा है |

वर्तमान समय में भारत से अधिक पश्चिमी देशो के द्वारा इस चिकित्सा पद्धति को बढ़ चढ़ कर अपनाया जा रहा है | 

प्राकृतिक चिकित्सा का उद्भव कैसे हुआ ?

यदि हम प्राकृतिक चिकित्सा के उद्भव या विकास की बात करे तो यह कहने में बिलकुल भी अतिश्योक्ति नही होगी की जब इन्सान की उत्पत्ति हुई उसके साथ ही साथ प्राकृतिक चिकित्सा का उद्भव भी हुआ | इसका साक्ष्य यह है की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पंचमहाभूतो के द्वारा / के सहयोग से की जाती है | और इन्सान भी पंचमहाभूतो के द्वारा ही बना है | तो निश्चित ही कहा जा सकता है की इस चिकित्सा पद्धति का उद्भव भी मानव की उत्पत्ति के साथ ही हुआ होगा |

 प्राकृतिक चिकित्सा क्या है ? प्राकृतिक चिकित्सा की परिभाषा

पंचमहाभूतो के सहयोग से पंचमहाभूतो को साम्यावस्था में लाना ही प्राकृतिक चिकित्सा है |

एक ऐसी प्राचीन चिकित्सा पद्धति जो बिना दवाओ के सहारे  केवल मात्र योग विश्राम ,स्वच्छता  , उपवास ,आहार-विहार, जल ,मिट्टी, वायु, प्रकाश आदि के संतुलित उपयोग मात्र से ही स्वस्थ और दीर्घायु की और हमारे स्वास्थ्य को ले जाती हे, यही प्राकृतिक चिकित्सा है |  पंचमहाभूतात्म्क  शरीर में प्रकृति प्रदत्त  पंचमहाभूतो की  सामंजस्यता को बनाये रखना ही प्राकृतिक चिकित्सा है |जिस चिकित्सा पद्धति में पंचमहाभूतो यथा :-

   क्षिति जल पावक गगन समीरा |

  पञ्च तत्व से बना शरीरा ||

                           

अर्थात पृथ्वी ,जल,वायु,अग्नि,आकाश आदि के उचित प्रयोग मात्र  से शरीर में उत्पन्न हुए रोगों का निराकरण कर दिया जाता है वह प्राकृतिक चिकित्सा है |

बीमारियाँ दूर करने के इन साधनों का उपायोग किसी न किसी रूप में सभी चिकित्सा पद्धतियों में आसानी से मिल जाता हे जिसका प्रमाण मोहन-जोदड़ो,मेसोपोटामिया तथा बेबीलोनया आदि में मिलता है |

वर्तमान परिपेक्ष्य में प्राकृतिक चिकित्सा कैसे उपयोगी है ?

प्राकृतिक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति ना होकर एक जीवनशैली है, जिसका पालन करते हुए व्यक्ति स्वस्थ,रोग मुक्त रह सकता है | प्राकृतिक चिकित्सा सर्वाधिक महत्वपूर्ण इस लिए भी है की यह व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाता है |

  1. प्राकृतिक चिकित्सा हमें जीवन पद्धति से भली भांति अवगत करवाती है |
  2. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रबल बनाती है |
  3. शाकाहारी भोजन तथा स्वास्थ्य के बीच के सम्बन्ध के ज्ञान से अवगत करवाना |
  4. रोगों की रोक थाम करना |
  5. मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना |
  6. स्वस्थ आदतों एवं सकारात्मक मनोवृतियो के विकास में सहयोग देना |

प्राकृतिक चिकित्सा हमे प्रकृति से निकटता बनाने का पाठ पढ़ाती है जब की आधुनिकता के प्रवाह में बहने वाले प्राकृतिक चिकित्सा को जंगली जीवन शैली के नाम से संबोधित करते है | जबकि वास्तविकता यह है की प्राकृतिक चिकित्सा कम खर्चीली ,सरल,सामान्य,तथा जनसामान्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है |

भोजन सम्बन्धी प्राकृतिक नियम

प्राकृतिक नियम के अनुसार प्राकृतिक भोजन बलवर्धक, ज्ञानवर्धक, शक्तिवर्धक एवं रक्तवर्धक होता है | लेकिन आज अप्राकृतिक भोजन मांसाहारी, मसालेयुक्त , खट्टे ,कडवे आदि भोजनों का बोल बाला अधिक है जो की रोग उत्पत्ति का कारण बनते है | प्राकृतिक चिकित्सा शास्त्र का मानना है की उच्च-रक्तचाप , मधुमेह,अस्थमा आदि रोगों को दूर कर्ण है तो शाकाहारी भोजन को अपनाना ही पड़ेगा | भोजन करने का समय निश्चित होना चाहिए |

निद्रा/ सोने का प्राकृतिक नियम  

जिस प्रकार भोजन करना जरूरी है वैसे ही सोना भी हमारे लिए उतना ही आवश्यक है शाम को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना प्राकृतिक नियम है | इससे शरीर स्वस्थ रहता है ,लेकिन आज लेट रात तक जागना तथा सुबह देर तक सोना लोगो की आदत व शोक सा बन गया है |

जल पीने के प्राकृतिक नियम

 प्राकृतिक नियम के अनुसार प्रात:काल बिना मुह धोये पानी पीना शरीर के लिए लाभकारी रहता है किन्तु आधुनिक जीवनशैली ने पानी की जगह चाय के सेवन को प्राथमिकता बना दिया है जो की अनेको रोगों का कारण बनती जा रही है | जल तत्व की गड़बड़ी से पेचिश, बहुमूत्र ,प्रमेह, प्रदर रोग, जलोदर , प्रतिश्याय आदि रोग उत्पन्न हो जाने का खतरा बढ़ जाता है | और प्राकृतिक चिकित्सा हमे जल ग्रहण करने के अहि नियमो का पालन करने का ज्ञान सिखाता है |

वस्त्र धारण करने के प्राकृतिक नियम

प्राकृतिक नियम हमे वस्त्र धारण करने के तोर तरीको से भलीभांति परिचित करवाते है | शरीर के लिए सूती वस्त्र सबसे उपयोगी व लाभदायक होते है | लेकिन सूती वस्त्रो की महंगाई बढती ही जा रही है | सिर नंगा रखना शोक हो गया है वन्ही महिलाये अंग प्रदर्शन में ज्यादा विश्वास करने लगी है |

दिनचर्या सम्बन्धी प्राकृतिक नियम

प्राकृतिक चिकित्सा हमे प्रात:काल उठने से लेकर रात को सोने तक की दिनचर्या को व्यवस्थित तरीके से व्यतीत करने या उसके पालन के नियमो से भलीभांति परिचित करवाते हुए स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करती है |

ऋतुचर्या सम्बन्धी प्राकृतिक नियम

प्रकृति ऋतू अनुसार हमे आहार विहार के नियमो का अनुशरण करने के लिए तैयार करती है |  हमारे शरीर में उपस्थित दोष धातुओ को साम्यावस्था में बनाये रखने के लिए ऋतुचर्या का निर्धारण किया गया |

ऋतू निर्धारण के आधार पर 6 ऋतू चक्रों का निर्धारण किया गया है –शिशिर,बसंत,ग्रीष्म,वर्षा,शरद ,हेमंत आदि है | अलग अलग ऋतुओ में भोजन व्यवस्था व विहार का अलग अलग वर्णन किया गया है क्योकि ऋतुओ के आधार पर ही दोषों का संचय और निस्तारण हो पाता है | और प्राकृतिक चिकित्सा में रोगी की चिकित्सा का निर्धारण करने में ऋतू चक्र का विशेष महत्व रहता है | ऋतू के अनुसार की गई चिकित्सा अत्यंत शीघ्र फलित होती है |

विचारो की शुद्धता सम्बन्धी नियम

रामायण में एक चोपाई कही गई है :-

“जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखे तिन जैसी “

जो व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जैसा विचार करता है वो वैसा ही स्वास्थ्य पाता है | वर्तमान समय में व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए अपने विचारो को सकारात्मक बनाये रखना भी बड़ी चुनोती है | इसलिए सदैव सकारात्मक मनोवृति को बनाये रखनी चाहिए | आज आधुनिकता की दोड़ में इन्सान नकारात्मकता को अपनाता चला जा रहा है | अन्य लोगो की हेल्प करने की नही बल्कि उन्हें नुकसान पहुँचाने की विचारधारा रखते है | और प्राकृतिक नियम हमे सकारात्मक विचार रखने का पाठ पढ़ाते हुए स्वस्थ रहने का मार्ग दिखाते है |

वर्तमान परिपेक्ष्य में यदि अवलोकन किया जाये तो प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व आपको स्पष्ट दिखाई देगा | क्योकि प्राकृतिक चिकित्सा आपको रोग से मुक्ति तो दिलाएगी ही साथ ही साथ आधुनिक चिकित्सा से उत्पन्न हुए दुष्प्रभावो से भी आपको काफी हद तक मुक्ति दिलाएगी , यही कारण है की प्राकृतिक चिकित्सा को आज विश्वभर में अपनाया जा रहा है | प्राकृतिक चिकित्सा को वर्तमान समय में इतने बड़े स्तर पर अपनाया जा रहा है इससे यह कहने में बिलकुल भी अतिश्योक्ति नही होगी की प्राकृतिक चिकित्सा सभी चिकित्सा पद्धतियों में श्रेष्ठ है |

इन सभी नियमो के कारण प्राकृतिक चिकित्सा सभी चिकित्सा शैलियों में अधिक उपयोगी / प्रिय होते जा रही है |

योग – प्राकृतिक चिकित्सा का अंग

योग प्राकृतिक चिकित्सा का अभिन्न अंग है | जिसकी ख्याति आज विश्व भर में जोर शोरो पर है जिसका सबसे बडा कारण योग के द्वारा मिलने वाले सफल परिणाम है  | योग व प्राकृतिक चिकित्सा के संगम से ऐसी कोई बीमारी नही बचती है जिसका उपचार संभव ना हो | योग के योग के द्वारा शरीर में लचीले पन को बरकरार रखते हुए अनेको रोगों को उपचारित किया जाता है | तो प्राणायाम के माध्यम से शरीर में ऑक्सिजन , कार्बनडाईआक्साइड आदि गैसों की सामयावस्था को बनाये रखने में व शरीर को शोधित करते हुए विषेले पदार्थो को शरीर से बहार निकाला जाता है | जिससे शरीर में उत्पन्न होने वाले उपद्रव रुपी रोगों  से बचा रहा जा सके |  

 यदि आपको हमारा लेख पसंद आया हो तो हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार में सहयोगी बने और शेयर करना करे |  

धन्यवाद !

Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

Written by

Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

1 Comment
  • naval Reply
    August 1, 2019

    good information sir

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