योग के आठ प्रकार कोन से है : आप में से बहुत से लोग योंगाभ्यासतो नियमित करते है किंतु अधिकतर लोगो को यह तो नहीं पता होता है कि योग के आठ प्रकार कोन से होते हैं ! आज इस आर्टिकल में आपको जानने को मिलेंगे योग के आठ प्रकार के बारे में साथ हीउनसे होने वाले योगाभ्यास में फ़ायदे के बारे में-
योग के आठ प्रकार
योग के आठ अंगो अर्थात अष्टांग योग का सही तरह से पालन करने के बाद आपको जो लाभ प्राप्त होगा वो अत्यंत ख़ुशी प्रदान करने वाले होते है साथ ही सुकून देने वाले होते है आगे बात करेंगे योग के आठ प्रकार के बारे में बने रहे आर्टिकल में अंत तक –
यम – यम के पांच भेद होते है – अहिंसा सत्य, अस्तेय , ब्रह्मचर्यं अपरिग्रह
नियम – योग में पांच व्यक्तिगत नियम बताये गए है जिनका पालन करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है | योग के पांच नियम – 1. शौच 2. संतोष 3, तप 4. स्वाध्याय 5. ईश्वर प्राणिधान
आसन – अष्टांग योग में तीसरे प्रकार में आसनों का वर्णन किया है | आसान के विषय में हठ योग प्रदीपिका में कहा गया है की जिस स्थिति में rhne से सुख की प्राप्ति होती हो साथ ही उस शारीरिक स्थिति में सुखपूर्वक अधिक समय तक रहा जा सके उसे आसान कहा जाता है | आसान से शरीर में लचीलापन बढ़ता है | दिनभर सक्रियता बनी रहती है |
प्राणायाम – प्राणायाम अर्थात प्राणों का आयाम | महर्षि पतंजली ने प्राणायाम के चार प्रकारों का वर्णन किया है -प्राणायाम करने में तिन मुख्य क्रियाओ की आवृति की जाती है 1. पूरक 2. कुम्भक 3. रेचक
प्रत्याहार – अष्टांग योग का पांचवा अंग होता है प्रत्याहार | प्रत्याहार से तात्पर्य इन्द्रियों को अपने अपने आहार विषयों से विमुख करना ही प्रत्याहार कहलाता है | हमारे शरीर में दो प्रकार की इन्द्रियां होती है 1. ज्ञानेन्द्रिय 2. कर्मेन्द्रिय |
ज्ञानेन्द्रियाँ पांच प्रकार ही होती है जिनके माध्यम से हम किसी भी विषय-वास्तु का ज्ञान कर सकते है – चक्षु (आँख) 2. घ्राण (नाक) 3. कान (श्रोत) 4. जिव्हा (जीभ) 5.त्वक (त्वचा)
इन पांच ज्ञानेन्द्रियो के पांच विषय होते है जो इस प्रकार है – 1. रूप 2.गंध 3. श्रवण 4. रस 5. स्पर्श
धारणा – धारणा अपने चित्त अर्थात विचारो को किसी एक विषय में बाँध लेना ही धारणा कहलाता है | अष्टांग योग में धारणा “धृ” धातु से बना है जिसका मतलब होता है धारण करना, संभालना, सहारा देना | मन के बाहरी विषयों या आंतरिक विषयों को बांधना ही धारणा कहलाता है |
ध्यान – ध्यान चेतन मन की एक विशेष सूक्ष्म प्रक्रिया है जिसमे दारा अपने मन को एक विषय मात्र में बाँध के स्थिर कर देना ही ध्यान कहलाता है | अर्थात ब्रह्मांड के विषयों से अपने चित्त को विमुख कर अपने आंतरिक भावो को देखने का प्रयास करना ही ध्यान है |
समाधि – ध्यान की उच्चतर अवस्था को समाधी कहा गया है |पतंजली योगसूत्र में समाधी को आठवा और अंतिम अंग बताया है |