गर्भकाल में उचित आहार-विहार का पालन करते हुए, नवमास चिकित्सा का नियमित और विधिवित् सेवन करना जितना उपयोगी और हितकारी होता है। उतना ही उपयोगी प्रसव होने पर कुछ सावधानियों का पालन करना और उचित आहार-विहार करना भी बहत उपयोगी होने से ज़रूरी होता है क्योंकि प्रसव होने के समय से लेकर कम से कम दो महीने तक कोई भी असावधानी होने से प्रसूता के शरीर और स्वास्थ्य पर ऐसा बुरा प्रभाव पड़ता है कि इस दुष्प्रभाव से होने वाली व्याधि लम्बे समय तक शरीर को पीड़ित करती रहती है और चिकित्सा से लाभ होने में बहुत ज्यादा समय लगने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी व्याधियों को प्रसूति रोग कहा जाता है ।
जब गर्भकाल के 9 मास पूरे हो जाएं।Diet and precautions after delivery
गर्भवती को दर्द की लहर आने लगे तब एक गिलास दूध में 5-6 छुहारे (खारक) डाल कर उबालें और अच्छी तरह उबाल कर उतार लें। ज़रा सी केसर आधा चम्मच दूध के साथ छोटी खरल में डाल कर घुटाई करके दूध में डाल दें। यह दूध कुनकुना गरम रहे तब छुहारे खूब चबा चबा कर खाते हुए पूंट-घूट करके दूध पीना चाहिए। जब तक प्रसव न हो तब तक दिन में एक बार खाली पेट स्थिति में, इस तरह तैयार किया हुआ दूध गर्भवती को पीना चाहिए। इस प्रयोग से प्रसव होने में विलम्ब नहीं होता और अधिक कष्ट नहीं होता।*
प्रसव (डिलीवरी) के बाद का भोजन देखभाल और सावधानियां :
हरीरा सेवन के फायदे ,बनाने की विधि और उपयोग का तरीका:
हमारे यहां प्रसव के बाद हरीरा सेवन करने की पुरानी परम्परा है और परिवार की बड़ी बूढ़ी महिलाएं हरीरा की सामग्री और बनाने की विधि की जानकार होती है तो वे बाज़ार से हरीरे का सामान मंगा कर दस दिन तक प्रातः नाश्ते के रूप में हरीरा ही खिलाती है। आपकी जानकारी के लिए हरीरा की सामग्री और बनाने की विधि प्रस्तुत है।*
हरीरा की सामग्री : प्रसव के दिन से लेकर 10 दिन तक प्रातः नाश्ते के रूप में सेवन कराने के लिए निम्नलिखित सामग्री बाज़ार से मंगा कर रखें। प्रसव होते ही हरीरा तैयार कर सुबह खाली पेट प्रसूता स्त्री को सेवन कराएं।
सामग्री
अजवायन 200 ग्राम
सोंठ 100 ग्राम
पीपल 10 ग्राम
बादाम 100 ग्राम
छुहारे (खारक) 200 ग्राम
पीपलामूल 10 ग्राम
गोंद 200 ग्राम
गुड़ शुद्ध घी आवश्यक मात्रा मे
विधि :सोंठ, पीपल, पीपलामूल और अजवायन- चारों को कूट पीस कर बारीक चूर्ण करके, इन सबको बराबर ठीक से मिला कर, दस भाग करके दस पुड़िया बांध कर रखें। रोज़ एक पुड़िया लेना है
सेवन विधि :20 ग्राम गोंद घी में तल कर फूले निकाल लें और प्लेट में रख लें। इसी घी में एक पुड़िया खोल कर डालें और भूनें फिर इसमें उचित मात्रा में गुड़ मसल कर डाल दें और हिलाते चलाते हुए एक कप पानी डाल कर इतनी देर तक पकाएं कि पानी जल कर खत्म हो जाए।गोंद के फूलों को पीस कर और बादाम गिरी व गुठली हटा कर छुहारों को बारीक काट कर इसमें मिला लें। बस, हरीरा तैयार है।
अब पहले एक गिलास गरम पानी के साथ एक चम्मच पिसी हल्दी प्रसूता को खिला कर पूरा पानी पिला दें फिर हरीरा खाने को दे दें। खाने के बाद एक गिलास गरम मीठा दूध पिला दें। यह दस दिन के लिए सुबहका नाश्ता हो गया। दस दिन बाद यह प्रयोग बन्द कर दें। दस दिन अन्नाहार का सेवन नहीं करना है। भूख लगने पर हरीरे की मात्रा बढ़ा लें और दूध बार-बार पिएं।
हरीरा सेवन से लाभ :हरीरा का सेवन करने से प्रसव के कारण शरीर में आई कमज़ोरी और पाचन शक्ति की कमी (मन्दाग्नि) दूर होती है,शरीर में बादी नहीं होती और जठराग्नि प्रबल होती है।
भूख बढ़ाने वाला चूर्ण:
ग्यारहवें दिन से भोजन शुरू करने से पहले एक चूर्ण दाल या तरावट वाली सब्ज़ी में डालना है।
चूर्ण- 10 गांठ सोंठ और 40 लौंग पीस कर छान कर शीशी में भर लें। दाल शाक में यह चूर्ण उचित मात्रा में डाल कर खाना खाएं। भोजन हलका, ताज़ा गरम और सुपाच्य होना चाहिए।
लाभ: सोंठ व लौंग के चूर्ण सेवन करने से इसमें सहायता मिलती है और भूख खुलती है। हाथ पैरों में और जोड़ों में दर्द नहीं होता तथा प्रसूति रोग होने की सम्भावना नहीं रहती।
पानी:
प्रसूता को 2 महीने तक किसी भी रूप में ठण्डे व कच्चे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए। ठण्डे पानी से हाथ धोना, कुल्ला करना, पीना या स्नान करना वर्जित है। दस दिन तक निम्नलिखित विधि से प्रतिदिन ताज़ा तैयार किया हुआ पानी ही प्रसूता को पीना चाहिए।थोड़ी सी सोंठ और 4 लौंग को मोटा मोटा कूट कर एक लोटा (2-3 गिलास) पानी में डाल कर उबालें फिर ठण्डा करके किसी बर्तन में ढक कर रखें।
प्रसूता को यही पानी पीना है। गर्मी के दिनों में सुराही या मटकी में पानी रख सकते हैं। दस दिन तक इस विधि से तैयार किया हुआ पानी पीने के बाद, ग्यारहवें दिन से 40 दिन तक सिर्फ़ उबाला हुआ फिर ठण्डा किया हुआ पानी पीना है। इसके बाद धीरे धीरे ताज़ा ठण्डा (फ्रिज में रखा हुआ नहीं) पानी पीना शुरू कर देना चाहिए
लाभ: विधि के अनुसार 10 दिन तक ताज़ा तैयार किया हुआ पानी पीने, फिर शेष 40 दिन तक सादा पानी उबाल कर ठण्डा करके पीने से, शरीर पर शीत व बादी का असर नहीं होता व शरीर स्वस्थ व निरोग बना रहता है।
पेट व कमर बड़ा न हो इसके उपाय
पेट व कमर का आकार बड़ा न हो इसके लिए टाइट लेडी जांघिया कम से कम दो मास तक पहनने के साथ ही एक पतले कपड़े (जैसे अंगोछा या पुरानी पतली धोती) से 8-10 इंच चौड़े पट्टे के रूप में पेट पर हलका कस कर बांध कर रखना चाहिए। ये पट्टा स्तनों के नीचे से और नाभि से तीन इंच नीचे तक के उदर भाग को कवर करता हो इस विधि से सुबह उठते ही बांध लेना चाहिए। सिर्फ़ टायलेट जाने या बिस्तर पर लेटते समय यह पट्टा ढीला कर लें या खोल डालें पर बैठे हुए, खड़े हुए या चलते फिरते समय यह पट्टा 60 दिन तक बांध कर रखना चाहिए । प्रसव के बाद 10-12 दिन सिर पर भी कपड़े का पट्टा बांध कर रखना चाहिए।
लाभ: पेट पर दो मास तक कपड़ा बांधने से पेट का आकार बढ़ता नहीं, पेट लटकता नहीं बल्कि सिकुड़ कर गर्भ धारण करने से पहले वाले स्वाभाविक आकार में बना रहता है जिसे देख कर यह अन्दाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता कि इस स्त्री को अभी प्रसव हुआ है या कि यह स्त्री सन्तान की मां है।जो स्त्री यह उपाय नहीं करती उसके पेट का आकार बढ़ जाता है, पेट लटक जाता है जिसे पुनः कम करना बहुत कठिन होता है और कभी-कभी नहीं भी होता
प्रसव के बाद योनि में विकार न हो इसके उपाय
प्रसव के बाद योनि में विकार, शिथिलता या विस्तीर्ण स्थिति न बने इसके लिए दस दिन तक निम्नलिखित प्रयोग करना चाहिए। साथ ही प्रसव के बाद कम से कम 40 दिन तक पति-सहवास कदापि नहीं करना चाहिए।
उपाय– माजूफल का महीन पिसा छना चूर्ण 100 ग्राम, मोचरस का महीन छना चूर्ण 50 ग्राम और लाल फिटकरी 25 ग्राम- तीनों को मिला कर तीन बार छान कर शीशी में भर लें। दो गिलास पानी में 20 ग्राम खड़े साबुत मुंग डाल कर अच्छी तरह से उबालें और फिर इसे छान कर इस पानी से योनि डूश करें। इसके बाद रूई का एक बड़ा फाहा पानी में गीला कर निचोड़ लें और इस पर उपर्युक्त तीनों चूर्ण का मिश्रण बुरक कर, एक लम्बा धागा बांध कर, यह फाहा सोते समय योनि में अन्दर रख लिया करें और सुबह डोरा पकड़ कर खींच कर फाहा निकाल दें।
इस प्रयोग से योनि की शिथिलता दूर होती है और योनि पूर्व स्थिति वाली हो जाती है। यह प्रयोग पूरी तरह लाभ न होने तक करते रहना चाहिए।