भ्रामरी प्राणायाम परिचय :-
भ्रमर का तात्पर्य ‘’भोंरा’’ होता है इस प्राणायाम को भ्रामरी इस लिए कहा जाता है कि रेचक करते समय जो ध्वनि या आवाज होती है वह भोंरे की आवाज के समान होती है |भंवरे की आवाज जितनी मधुर होती हैं इसके अभ्यास से भी उतने ही अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम करने का सही तरीका
विधि.1 :-पद्मासन,सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाये | दोनों नासिका छिद्रों से लम्बा गहरा श्वास लीजिये ,फिर दोनों हाथो की तर्जनी अंगुली से कानो को बंद कीजिये | चाहो तो कुछ देर श्वास को रोक कर भी रख सकते हो ,अब भोंरे के समान गुंजन के साथ धीरे-धीरे रेचक करे अर्थात श्वास को बहार छोड़े| इस प्रकार 5 चक्र से 10 चक्र तक इस प्रक्रिया को दोहराए |
विधि .2 :षडमुखीमुद्रा भ्रामरी
पद्मासन,सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाये | दोनों नासिका छिद्रों से लम्बा घर श्वास लीजिये ,फिर दोनों हाथो के अंगूठे से कर्ण उपास्थि को धीरे से दबाये | पहली सबसे छोटी अंगुली कनिस्टा को नीचे वाले होठ के नीचे या मुह पर ,अनामिका अंगुली को नासिका पर या होठो के मध्य,मध्यमा को आँखों पर व तर्जनी अंगुली को भोहो के उपर आज्ञाचक्र के दोनों और लगाये | अपनी जिव्हा को तालू प्रदेश में उपर की और घुमा के लगा दे | उसकेबाद भोरे के गुम्बन के समान आवाज निकालते हुए स्वतंत्र रूप से श्वास को बहार छोड़े |
विधि .3 :-घेरंड संहितानुसार
जबअर्ध-रात्रि व्यतीत हो जाये और जीव-जन्तुओ के शब्द सुनाई ना दे | तब एकांत में जाकर साधक अपने दोनों हाथो से दोनों कानो को बंद करके पूरक और कुम्भक करे | फिरअंदर की विभिन्न आवाजो को दाहिने कान से सुने | जिसमे आपको पहले झींगुर कीध्वनि,फिर बांसुरी की धुन, ,फिर बादलो के गरजने की धुन, फिर झांझ के बजने की धुन,फिरभोंरो के गुंजन ,घंटे,घड़ियाल,भेरी,मृदंग,आदि ध्वनि सुनाई पडती है |इस प्रकार नित्यअभ्यास से विभिन्न प्रकार के नाद सुनाई पड़ते है | और अनाहत में शब्द ध्वनी होने लगती है | यही अद्भुत ध्वनि है इसमे जो ज्योति दिखाई देती है | वही ब्रह्मा है जब ब्रह्म में हमारा मन विलीन हो जाता है तब विष्णु भगवान के परम पद की प्राप्ति होती है इसी प्रकार भ्रामरी कुम्भक सिद्ध होने पर समाधी की सिद्धि होती है | घेरंड जी आगे कहते है कि जप से आठ गुना उत्तम ध्यान है ध्यान से आठ गुना तप है और तप से आठगुना संगीत (अनहद नाद ) है ,एवं इस संगीत से बढकर इस ब्रह्माण्ड में कुछ भी नही है|
भ्रामरी के लाभ/फायदे
- अनिंद्रा दूर होती है |
- उच्च-रक्तचाप में लाभकारी रहता है |
- मानसिक रोग –चिडचिडापन ,गुस्सा,आवेग वतनाव आदि में लाभकारी है |
- हार्मोन्स के असंतुलन व थायरोइड में सड्मुखीमुद्रा के साथ भ्रामरी के अच्छे परिणाम सामने आरहे है |
- स्वर मधुर होता है ,साथ ही आवाज में मधुरता आती है |
- माइग्रेन या सिरदर्द के रोगियों के लिए भ्रामरी बहुत ही लाभ दायक प्राणायाम है |
- आज्ञाचक्र पर ध्यान लगाने से मन शांत हो जाता है |
- आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे स्वम् के लिए स्वम् की निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है |
- भ्रामरी के नियमित अभ्यास से बोद्धिक-क्षमता तीक्ष्ण हो जाती है |
ध्यान रखने योग्य बाते / सावधानिया
- भ्रामरी करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की अंगूठे या अंगुली से आप कान बंद करते समय कान के अंदर अंगुली या अंगूठे को कभी ना डाले केवल उपास्थि को ही हल्के हाथ से दबाये |
- गुंजन करते समय आप प्रणव मन्त्र ॐ की ध्वनि निकालने का प्रयास करे |
- मुह बंद रखे किन्तु दांतों को आपस में ना मिलाये |
- भ्रामरी को श्ड्मुखी मुद्रा के साथकरने का अभ्यास करे | जिससे अधिक लाभ की सम्भावना रहती है |
- गुंजन करते समय कई बार दुसरे शब्दों का उच्चारण होने लगता है अत: ध्यान रखे भोंरे के गुम्बन के समान आवाज ही निकलने का प्रयास करे |
धन्यवाद !
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