परिचय
बवासीर या अर्श को अंग्रेजी में पाईल्स(piles) के नाम से जाना जाता है | जिनमे अर्श संस्कृत शब्द है बवासीर यूनानी ,पाइल्स होमोरोइड्स अंग्रेजी आदि नामो से जाना जाता है |
केवल गुदा में होने वाले मस्से को ही अर्श के नाम से नही जाना जाता है बल्कि लिंग,योनी,आँख,कान,मुह,और नाक आदि स्थानों पर भी अर्श की उत्पत्ति हो जाती है | हमारे गुदा के अंदर मुख्यतः तीन वलीय क्रमशः प्र्वाहणी ,विसर्जनी व संवरणी अंदर से लेकर बहार तक रहने वाली वलीय है | प्र्वाहणी वलीय का काम मल और वायु को बहार निकालना होता है ठीक वैसे ही विसर्जनी/सर्जनी का काम मल और वायु को बहार की और धकेलना है तो तीसरी वलीय संवरणी मल को बहार निकालकर गुदा को पूर्व की अवस्था में लाने का कार्य करती है | पहली और दूसरी वलीय का परिमाण डेढ़ डेढ़ अंगुल होता है तो तीसरी का परिमाण एक अंगुल होता है अंतिम का जो आधा अंगुल में गुद द्वार का जो हिस्सा है उसी में अर्श की उत्पत्ति मुख्यतः होती है |जब हम आहार का ध्यान नही रखते है ऐसी स्थिति में आंते अपनी कार्यक्षमता व पोषण की कमी के कारण कमजोर हो जाती है जो की पानी का अवचुषण ठीक प्रकार से नही कर पाती है और मल कठोर होने लगता है,कठोर हुए मल के कारण शोच के समय अतिरिक्त दबाव लगाने से वलियो पर दबाव आता है जिससे वो कमजोर होकर व रक्त के स्पॉट बन जाते है ये स्पॉट जब आगे जाकर भयंकर रूप धारण कर लेते है | इन वलियो में निरंतर कब्ज (constipation) के कारण अतिरिक्त दबाव के पड़ने/रहने से गुदा मे जो विकार पैदा हो जाता है उसे ही अर्श ,बवासीर (piles) आदि नामो से जाना जाता है |
“बवासीर कोई स्वतंत्र रोग नही,अपितु रोग का लक्षण मात्र है” |
पाइल्स मुख्यरूप से सभ्य समाज का रोग है | बवासीर की उत्पत्ति यह संकेत देती है की हमारे शरीर के भीतर विजातीय पदार्थो का संग्रहण अधिक हो चुका है और उसको बहार निकालने में अज्ञानतावश हम हमारे ही शरीर का साथ नही दे पा रहे है | साथ देने से तात्पर्य यह है की जिस लाइफस्टाइल को हम जी रहे है | वह हमारे शरीर के अनुरूप नही है हमे उसको बदलने की आवश्यकता है | यदि समय रहते हुए हम बदल देते है तो बवासीर अधिक दुखदायी होने से पूर्व ही खत्म हो जाती है |
मुख्य रूप से बवासीर के वलियो के आधार पर दो प्रकार होते है –
1.जो गुदा के बाहरी भाग में होते है उनको बाह्यार्श कहा जाता है |
2.जो वलियो के भीतरी भाग /वलियो में होते है उनको आभ्यांतरार्श कहा जाता है |
बवासीर के कारण (CAUSES OF PILES )
- बबासीर का मुख्य कारण कब्ज को माना जाया है क्योकि कब्ज के कारण ही हमारी वलियो पर दबाव पड़ता है |
- जो व्यक्ति मैदा डबल रोटी,डिब्बाबंद वस्तुओ का अधिक सेवन करता हो जिससे कि उसका पेट सही से साफ नही हो पाता हो और कब्ज लगातार बनी रहती हो ऐसी स्थिति में आंतो में सडन से गर्मी बढ़ जाती है और आंते कमजोर हो जाती है परिणामस्वरूप आंतो की झिल्ली कमजोर हो जाने से धीरे-धीरे गुद प्रदेश में भारीपन का एहसास होता है |
- मलमूत्र के वेग को रोकने से
- बहुत देर तक एक ही अवस्था में बैठे रहने से |
- चोट लगने से |
- विषम भोजन आदि के निरंतर सेवन से |
- नमकीन व तीक्ष्ण पदार्थो का अधिक सेवन करने से |
- समय से भोजन नही करने से या अधिक समय तक भूखा रहने से |
- अत्यधिक मदिरा/शराब के सेवन करनेसे
- वेगो को धारण करने से |
- अत्यधिक स्त्री प्रसंग आदि से |
बबासीर/अर्श के प्रकार ( TYPES OF PILES )
अर्श/बवासीर के छ: भेद आचार्यो ने बताये है जो इस प्रकार है |
- वातज:-लक्षण
वातज अर्श सभी प्रकारों में अधिक कष्ट दायक होते है
वातज अर्श बेर ,खजूर,कपास के खिले हुए फूलो के समान होते है कभी भोजन का पच जाना तो कभी बिल्कुल नही पचना | शरीर में दर्द का अधिकांश समय बना रहना | वातज अर्श के रोगी की चमड़ी जली हुई सी दिखने लग जाती है ,आँखों का रंग,शोच व मुख का रंग भी काला पड़ जाता है | दर्द के साथ झागदार व चिकना मल आता है |
- पित्तज:-ज्वर,पसीना,प्यास,अरुचि,व नीला पीला या लाल रंग का मल आता है |
शरीर में दाह/जलन रहती है मस्सो से खून टपकता है |
पित्तज बबासीर गर्मी के मोसम में आधिक होते है |
मस्से महीन,कोमल और म्रदु होते है खुजली अधिक चलती है |
- कफज:-इन मस्सो में खुजली अधिक होती है जो की बड़ी प्यारी लगती है इनकी वजह से अफारा रहने के साथ ही साथ गुदा,मूत्रमार्ग,व नाभि में दर्द होता है |
इन मस्सो में खून नही गिरता लेकिन लक्षणयुक्त कफ मिश्रित वसा की भांति मल गिरता है |
- रक्तज:-रक्तार्श में खून अधिक गिरने से रोगी वर्षाकालीन मेंढक की तरह अत्यधिक कमजोर हो जाता है मल अधिक कठोरता के साथ गिरता है जिससे गुद प्रदेश में अत्यधिक पीड़ा होती है और वलयो पर दबाव पड़ने से नर्म हुई चमड़ी फट जाती है और खून बहने लगता है |अपान वायु के दूषित होने से रक्तार्श की उत्पत्ति होती है |
- सन्निपातज :-जिस बबासीर में अन्य सभी के मिले झूले लक्षण मिले वह सन्निपताज या असाध्य बबासीर समझना चाहिए |
- सहज :-इस प्रकार के अर्श वन्सानुगत होते है यदि किसी के माँ पिता,दादा,दादी आदि को बबासीर की समस्या रही हो तो संतान में भी इसके होने की सम्भावना काफी हद तक बढ़ जाती है | क्योंकि गर्भावस्था काल में माँ द्वारा अर्श रोग को पैदा करने वाले आहार-विहार सेवन किये जाते है इन कारणों से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान को भी पाइल्स होने की सम्भावना रहती है |
अर्श या बवासीर के लक्षण
मन्दाग्नि ,विबंध,कभी मल कठोर तो कभी ढीला नाभि के आस पास में हल्का हल्का दर्द का एहसास होना , भोजन में अरुचि,शोच के साथ रक्त का गिरना ,लम्बे समय तक बबासीर से शरीर दुबला हो जाता है चिंता,क्रोध,और आलस्य के साथ ही साथ उपद्रवश्वरूप खांसी ,छींके ,सम्पूर्ण शरीर में जकडन या हल्के दर्द का बना रहना,शुक्राणुओं में कमी,व ओज का छय आदि लक्षण दिखाई देने लगते है |
बबासीर/ पाइल्स की आयुर्वेदिक चिकित्सा ( AYURVEDIC TREATMENT OF PILES )
अर्शकुठार रस, बोलबद्ध रस , अग्निमुख लोह ,तारा मंडूर,बोल पर्पटी,प्राणदा वटी,अर्शोहनी वटी, बाहुशाल गुड पाकवलेह ,समंगवादी चूर्ण ,कर्पूरादी चूर्ण, विजय चूर्ण,दंत्यारिस्ट,अभ्यारिस्ट,उशिरासव ,कासीसादी तेल ,अर्शोहर टेबलेट,अर्शान्तक मलहम,एरंड तेल,स्वादिष्ट विरेचन, पंचसकार चूर्ण,पंचकोल चूर्ण, आदि के सेवन से कम समय में ही लाभ मील जाता है |
अर्श/बवासीर की प्राकृतिक चिकित्सा
इस रोग को जड़ से खत्म करने के लिए ये अत्यंत आवश्यक है की कब्ज को पूरी तरह से खत्म किया जाये क्योंकि इस रोग की उत्पत्ति ही कब्ज के कारण होती है | लम्बे समय से जड़ जमाये बैठी कब्ज से आंते अत्यंत कमजोर हो जाती है इसलिए चिकित्सा के प्रारम्भ से ही रोगी को ऐसे भोज्य पदार्थो का सेवन करवाना चाहिए जिनसे कब्ज के साथ साथ मल भी मुलायम हो जाये जो की बिना तकलीफ दिए ही बहार आ जाये | इसके लिए उपवास पर रहते हुए नित्य दिन में दो बार एनिमा लेकर पेट की सफाई करनी चाहिए ध्यान रहे एनिमा में नारियल तेल या तिल तेल मिलाकर लगाये जिससे आंतो को मजबूती मिले | रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक सलाद और फल _सब्जियों का रस देना चाहिए | रोगी को कटी स्नान करवाए साथ ही पेट की मिट्टी पट्टी करे जिससे उसके मल को मुलायम होने में सहायता मिले | कुछ समय अन्तराल के बाद रोगी को उबली हुई सब्जिया , फलो का जूस दलिया चोकर समेत आटे की रोटी ,मट्ठा,पालक,तोरई,हरा पपीता,आदि को देना लाभदायक सिद्ध होता है | दाले व उत्तेजक भोज्य पदार्थो का त्याग क्र देना चाहिए |
खुनी बबासीर में हरी बोतल की सुर्यतप्त जल की 4 खुराके और बादी वाले बबासीर में नारंगी रंग की बोतल के जल इ 4 खुराक 50-50 ग्राम की मात्र में लेनी चाहिए |
घरेलू उपचार
- बापची के पत्तो का रस गुदा में लगाने से बहार आये मस्सो में आराम मिलता है |
- बड के पत्तो की राख को सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से मस्से नष्ट हो जाते है |
- नीम और कनेर के पत्तो का लेप मस्सो को नष्ट करता है|
- कलोंजी की राख को शहद में मिलकर गुदा पर लेप करने से मस्से में चमत्कारिक परिणाम देखने कपो मिलते है |
- गुड के साथ हरीतकी का सेवन अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है |
- सहन्जन ,नीम और पीपल के पत्तो का लेप मस्सो का दुश्मन है |
- छोटी हरड को एरंड के तेल में भुन कर रात्रि को सेवन करे |
- दारुहल्दी,खस,नीम की छाल और काले तिलों को मिलाकर लेने से आराम मिलता है |
- काले सर्प की कैंचुली की राख को सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से मस्सा कट जाता है
- प्रातः ठंडे पानी के साथ कच्चे काले तिल का सेवन मस्सो को ठीक करता है |
- केले के साथ कत्थे का सेवन अर्श रोग में हितकारी होता है |
- अपामार्ग के पंचांग के चूर्ण को मिस्री मिलाकर सुबह शाम सेवन करे |
बबासीर में पथ्य-अपथ्य अर्थात बबासीर में क्या खाये क्या न खाये (DIET PLAN FOR PILES )
पथ्य –क्या खाये :-पुराने चावल का भात ,बथुआ,सोंफ,करेला,तोरई,छाछ,कच्चा पपीता,कैले का फूल,किशमिश,अंगूर,पका बेल,आवले,कांजी,हरीतकी,जो,परवल,गोमूत्र,सरसों का तेल,सोंठ आदि|
अपथ्य –क्या न खाये;-उड़द की दाल, दही,सेम,तले-भुने पदार्थ,पका आम,भारी भोजन,वीर्य विरुद्ध आहार,बेसन,मैदा,मिर्च-मसाले,दिन में सोना आदि का सेवन नही करना चाहिए |
विशेष :- हमारे द्वारा निर्मित “अर्श दयाल” हर्बल मेडिसिन का नियमित 10 दिनों तक सेवन करने से सभी प्रकार के बवासीर से छुटकारा मिल जाता है | दवाई के लिए बुक इन अपॉइंटमेंट का उपयोग करे |
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1 Comment
जावेद खान
January 20, 2020अर्श की बहुत ही सराहनीय चिकित्सा बताई गई हैं वास्तव मैं इनके द्वारा बताई गई चिकित्सा पथ्य/अपथ्य पर आधारित व नियमित आयुर्वेद औषध के अनुसार जड़ से मुक्ति पाई जा सकती है ।
बिल्कुल अर्श दयाल हर्बल मेडिसिन का उपयोग करके अर्श पूर्णतः से छुटकारा पा सकते हैं।
धन्यवाद