पेचिश / Dysentery
पेचिश मुख्य रूप से ऊर्दू शब्द है। पेचिश को प्रवाहिका, आंव आना,रक्तातिसार,डिसेन्ट्री आदि नामों से जाना जाता हैं।यह मुख्यतः पाचनतंत्र का रोग है। लम्बे समय तक कब्ज का बना रहना व खराब पाचन तंत्र की वजह से बडी आंते जख्मी हो जाती हैं जख्मी हुई आंतों से रक्त का रिसाव होने लगता हैं जो कि मल त्याग के समय बहार आंव के साथ निकलता है।इसका संक्रमण जीवाणु व परजीवियों के कारण होता है जो कि दूषित खाद्ध पदार्थों मे विधमान रहते हैं।
पेचिस के प्रकार
1. बैक्टीरियल डिसेन्ट्री :-
शिगेला बैक्टीरिया से आंतों में होने वाले संक्रमण को बैक्टीरियल डिसेन्ट्री कहा जाता हैं।यह मुख्य रूप से सडक़ किनारे दुकानों पर बिना ढके खाद्य पदार्थों से होता है इस तरह के खाद्य पदार्थों की वजह.से होने वाले अतिसार को शिगेलेशिष कहा जाता हैं।
2. अमीबी पेचिश:-
यह अमीबियासिस के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके प्रभाव से आंते संक्रमित हो जाती हैं।अमीबा पेरालाइटिस का समूह एक साथ मिलकर सिस्ट का निर्माण करते है।दूषित स्थान पर यह तीव्र गति से फैलता है।
पेचिस होने के कारण
पेचिश का मुख्य कारण दूषित जल व भोजन का निरंतर सेवन है। जो भोजन किसी भी माध्यम से दूषित हो चुका हो जैसे मानव मल के सम्पर्क से, संक्रमित व्यक्ति द्वारा बिना हाथों की सफाई के भोजन को छू लेने, संक्रमित पानी में नहाने, संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से धुम्रपान करने,शराब का नियमित व अधिक मात्रा में सेवन करने से आदि।।
जाने पेचिस या Dysentery के लक्षण
इसके लक्षण कम व अधिक दोनों हो सकते हैं हल्का पेट दर्द, पेट मे ऐंठन जैसा आभास होना,दस्त लगना, दूध से निर्मित पदार्थों को पचाने में असहजता महसूस होती हैं जिसे लैक्टोज इंटोलेरेंस कहा जाता हैं यह समस्या लम्बे समय तक बनी रहती हैं।
पेचिश के भेदानुसार लक्षण
बैक्टीरियल पेचिश:-पेट में गंभीर दर्द, ज्वर(बुखार),जी मिचलाना, उल्टी आना आदि
अमीबी पेचिश:- पेट दर्द के साथ रक्तातिसार, शीतज्वर, पतले दस्त के साथ साथ आंव का आना,शौच के समय दर्द का अहसास होना आदि।
पेचिस का इलाज या उपचार क्या है ?
प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज
1.रोग का मालूम होते ही 5-7 दिन का उपवास करें। नित्य प्रातःकाल गुनगुने पानी का एनिमा लेकर पेट की सफाई करें।
2.नियमित रूप से पीने के लिए गुनगुने पानी का उपयोग करें।
3. 5-7दिन उपवास के पश्चात फलों के रस व उबली हुई सब्जियों पर तब तक रहे जब तक की आंव बनना बन्द न हो जाये।
4.आंव बनना बन्द होने के बाद गाय का ताजा मट्ठा लेना प्रारंभ करते हुए मात्रा को निरंतर बढाते हुए 500-500मिली दिन में4 बार लें।
5.पेडू पर गिली मिट्टी पट्टी सुबह शाम30-30 मिनट के लिए रखें।
6.पेट मे ऐंठन व दर्द के समय पेट पर10 मिनट गर्म सेंक फिर आधा एक मिनट ठंडी पट्टी लगावें।
7.पेडू पर भाप देने के बाद सुबह शाम कटि स्नान ले।
8. रात के समय कमर पर भीगी चादर की लपेट लगाकर सोये।
9.यदि आंतों में जलन होती हो तो 10 ग्राम ईसबगोल पानी में भिगोकर लें।
10.नियमित सूक्ष्म व्यायाम व प्राणायाम का अभ्यास किसी प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह से करें।
पथ्य:- मट्ठा, बकरी का दूध, पका हुआ कैला,बेल का गुदा, पुराना गुड,मोसमी फल व सब्जियां आदि
आयुर्वेद आदर्श चिकित्सा
बिलाजिल अवलेह, बिल्वादि गुटिका, Dysentery tab.आदि का इस्तेमाल आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में किया जाता है |
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धन्यवाद |
2 Comments
Sunil Sura
August 18, 2018Sir,
Aapse samprak kaha krna hoga. Back problem h. Meri maa ko 3 sal se. Krpa karke jbab jrur de.
admin
August 18, 2018shri dayal natural spine care jaipur mob.9887282692
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