पंचकर्म के प्रकार: आयुर्वेद जीवन जीने का शास्त्र है । इसमें जीवन को कैसे जिया जाये जैसी प्रणालियों का पता चलता है । पंचकर्म भी आयुर्वेद का एक भाग है । संस्कृत में पंचकर्म का अर्थ पांच चिकित्सकीय कर्म से है । इसमें कर्म का तात्पर्य कार्य है मतलब कि पंचकर्म एक प्रमुख चिकित्सा पद्धति है जो स्वास्थ्य को संतुलित करने, रोगों का निदान करने और शरीर के विभिन्न रोगों से मुक्ति प्रदान करने के लिए उपयोगी है। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति अत्यंत महत्वपूर्ण है और आज भी इसका उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है। पंचकर्म में पांच प्रमुख क्रियाएं होती हैं जिन्हें विभिन्न रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यही पंचकर्म कहलाता है ।
आज के इस लेख में हम आपको बतायेंगे की पंचकर्म क्या है और पंचकर्म के प्रकार क्या है और उनका छोटा – छोटा जानकारी भी देंगे । तो चलिए पहले पंचकर्म क्या है जान लेते हैं ।
पंचकर्म क्या है ? (What is Panchakarma in Hindi)
पंचकर्म संस्कृत के दो शब्द पञ्च और कर्म की संधि से बना है । पञ्च का अर्थ है 5 और कर्म का अर्थ है कार्य । यानि की आयुर्वेद में रोगों को रोकने के लिए शरीर को साफ़ करने के लिए पांच कर्म किये जाते है । जिनसे शरीर में आंतरिक व बाहरी टोक्सिंस को निकाला जा सके और फिर शरीर को अच्छा स्वस्थ बनाया जा सके ।
पंचकर्म का उद्देश्य शरीर की जैविक कोशिकाओं का शोधन है । जैविक कोशिका शोधन होने से किसी भी रोग में अच्छा लाभ होता है । इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि आयुर्वेद में पंचकर्म एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को सुधारता है। इसका मुख्य उद्देश्य रोगों के कारणों का पता लगाना, उन्हें नष्ट करना और स्वास्थ्य की पुनर्स्थापना करना है। यह शरीर की बाधाओं और विकृतियों को दूर करके प्राकृतिक तरीके से रोगों का इलाज करना ही पंचकर्म का कार्य है।
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चलिए अब हम आपको पंचकर्म के प्रकार की जानकारी देते हैं –
पंचकर्म के प्रकार (Types of Panchakarma in Hindi)
पंचकर्म 5 प्रकार का होता है । इसमें सभी के प्रकार हमने निचे लिखें है और फिर इनका संक्षिप्त जानकारी भी दिया है –
- वमन
- विरेचन
- बस्ती
- नस्य
- रक्तमोक्षण
पंचकर्म के प्रकार की जानकारी और परिभाषा
1. वमन (therapeutic emesis)
वमन प्रक्रिया में विशेष आहार और दवाओं का सेवन करके शरीर से विषैले पदार्थों को निकाला जाता है। इसमें पेट में स्थित रोगों के कारणों को बाहर निकालने का कार्य किया जाता है । यह प्रक्रिया कफ विकृति के इलाज के लिए उपयोगी होती है और शरीर की सार्वभौमिक स्नायुओं को शुद्ध करने में मदद करती है। इससे जुकाम,अस्थमा, आई ठीक होते है ।
2. विरेचन (therapeutic anxiety)
विरेचन प्रक्रिया में मलाशय और पेट को साफ करने के लिए दवाओं का सेवन किया जाता है। विरेचन का कार्य शरीर से रोग और रोग के कारणों को गुदाशय से बाहर निकालना है । यह वात और पित्त विकृति के इलाज में उपयोगी होता है और शरीर को शुद्ध करने में मदद करता है।
3. बस्ती (Medicated Anima)
बस्ती प्रक्रिया में मेडिकेटेड द्रव्य को गुदा के माध्यम से दिया जाता है। यह प्रक्रिया वात विकृति के इलाज के लिए उपयोगी होती है और शरीर के ऊतकों को पोषित करती है। पंचकर्म के प्रकार में आयुर्वेदिक दवाओं को गुदा मार्ग से अन्दर डालकर रोग में आराम किया जाता है । यह एक प्रकार का पंचकर्म है, जिससे उम्र में युवापन बढ़ता है ।
4. नस्य (Nasal administration)
नस्य प्रक्रिया में नासिका द्वारा औषधि को दी जाती है। यह प्रक्रिया शिरोरोगों, अन्धापन, नकसीर और दिमागी विकारों के इलाज में उपयोगी होती है। इसे नस्य कर्म कहते हैं । यह पंचकर्म के प्रकार में नस्य दवा का सेवन करवाना सिर के सभी रोगों में आराम करती है । सिरदर्द, आँखों के रोग, मिर्गी में इसका लाभ होता है ।
5. रक्तमोक्षण (bloodletting)
रक्तमोक्षण प्रक्रिया में शरीर से रक्त को निकाला जाता है। यह रक्त विकृति के इलाज के लिए उपयोगी होती है और रक्त की शुद्धि करती है। शिरा में चोट लगाकर और नसों के द्वारा टोक्सिंस युक्त ब्लड को बाहर निकाला जाता है । यह पंचकर्म के प्रकार में इनप्योर ब्लड को बाहर निकालकर रक्त को शुद्ध किया जाता है ।
पंचकर्म के लाभ
पंचकर्म कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं:
- विषैले पदार्थों का निकालना और शरीर की शुद्धि करना ।
- वात, पित्त और कफ को संतुलित करना और शरीर को संतुलित करके रोगों से बचाव करना ।
- रोगों के कारणों का पता लगाना अर्थात रोग के कारण का पता लगाकर उसे शरीर से बाहर निकालना ।
- रोगों का निदान करना और शरीर में ताजगी लाना ।
- शरीर की पुनर्स्थापना और रेजुवेनेट करना ।
- वसा को कम करना और मोटापा घटाना ।
- जोड़ो के दर्द और कफ आदि में आराम मिलना ।
पंचकर्म के लिए महत्वपूर्ण चरण
पंचकर्म प्रक्रिया के तहत कई महत्वपूर्ण चरण होते हैं। आमतौर पर इसके 3 मुख्य चरण होते हैं जिनका पालन आवश्यक रूप से किया जाता है । इनमें से कुछ महत्वपूर्ण चरण निम्नलिखित हैं:
1. पूर्व-तैयारी चरण (पूर्व कर्म)
पंचकर्म से पहले शरीर को प्रीपर करने के लिए उपयोगी आहार, दवाएँ और उपचारों का सेवन किया जाता है। इस चरण में शरीर को आवश्यक ताकत प्रदान की जाती है ताकि प्रक्रिया के दौरान शरीर को कोई क्षति न हो। जिससे रोग का अच्छे से इलाज हो और मुख्य पंचकर्म करते समय कोई समस्या न हो ।
2. मुख्य पंचकर्म प्रक्रियाएं (प्रधान कर्म)
प्रमुख पंचकर्म प्रक्रियाएं रोग के प्रकार और लक्षणों के आधार पर चयनित की जाती हैं। इन प्रक्रियाओं में उचित औषधि और पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो रोग के संदर्भ में सबसे उपयुक्त हों। इसी में पंचकर्म के प्रकार 5 सम्मिलित है । यह एक प्रधान कार्य है । इसी के द्वारा रोग को काबू किया जाता है ।
3. पंचकर्म के बाद की देखभाल (पश्चात कर्म)
पंचकर्म के बाद, शरीर को संतुलित रखने के लिए उचित आहार, व्यायाम और दवाओं का सेवन किया जाता है। यह चरण रोग की फिर से होने को रोकने और स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। इसमें digestive फायर को सुधारा जाता है । इस प्रक्रिया में सभी आहार, व्यायाम की प्रक्रियाएं आती हैं ।
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