वातज्वर अर्थात वायु के कारण होने वाले बुखार को आयुर्वेद में वात ज्वर के नाम से जाना जाता है। ठंड के मौसम में अधिक ठंडे पदार्थों का सेवन और ठंड लगने के कारण बुखार आ जाती है। जिसके कारण रोगी को बुखार आता है और उसे बहुत अधिक ठंड या जाङा लगता है। जरूरी नहीं है की वात ज्वर सर्दी के मौसम में ही आए कई बार रुखा सुखा भोजन करने के कारण और शरीर में वायु दूषित होने के कारण भी बुखार आ जाती है जिसे भी वातज्वर के नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ को त्रिदोष माना है। यह हमारे शरीर में मौजूद होते हैं, परंतु जब यह तीनों ही अपने सामान्य अवस्था से ज्यादा या कम हो जाए तो यह दोष अर्थात रोग उत्पन्न करते हैं। उसी प्रकार जब वायु शरीर में अधिक हो जाती है और कुपित हो जाए तो यह वात ज्वर जैसे रोगों को जन्म देती है।
आज इस आर्टिकल में हम आपको आयुर्वेद के अनुसार वात ज्वर होने के कारण, लक्षण और वात ज्वर की चिकित्सा के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक देंगे। अतः आप इस आर्टिकल को अंतिम तक अवश्य पढ़े। तो चलिए जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार वात ज्वर क्या है?
वातज्वर क्या है?
वात ज्वर – शीतल पदार्थों के अधिक सेवन करने तथा अधिक मात्रा में उपवास या व्रत करने के कारण शरीर में वायु अधिक बढ़ जाती है। जो शरीर में रोग उत्पन्न करती है और वायु के कुपित होने या अधिक बढ़ने के कारण बुखार आने लगता है जिसे वात ज्वर के नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेद मतानुसार वातज्वर के कारण
शरीर में वायु बढ़ने और उसके कारण बुखार आने के अनेक कारण है परंतु कुछ सामान्य कारण है जो निम्न है-
- शीतल पदार्थों का अधिक सेवन
- ज्यादा मेहनत करना
- हल्के पदार्थ का अधिक सेवन
- मलमूत्र के वेग को रोकना
- अधिक उपवास या व्रत करना
- शस्त्र या लकड़ी की चोट
- अधिक शोक करना
- चोट लगने के कारण अधिक खून का बहना
- रात में जागना
- शरीर को टेढ़ा तिरछा रखना
- बिना इच्छा के स्त्री – प्रसंग करना
आदि के कारण वात कारक आहार विहारों से वायु कुपित हो जाती है अर्थात दूषित हो जाती है और दूषित वायु आमाशय में घुसकर आहार के सारभूत रस को दूषित करती है। उस समय रस और पसीनों का बहना बंद हो जाता है अतः पाचक अग्नि मंद हो जाती है और जठराग्नि की गर्मी बाहर निकल जाती है तथा पूरे शरीर में वायु स्वतंत्र होकर वात ज्वर की उत्पत्ति करती है।
वात ज्वर होने के बाद उत्पन्न होने वाले लक्षण
जब शरीर में वायु दूषित हो जाए या अधिक बढ़ जाए और उसके बाद बुखार आना शुरू हो जाए तो ज्वर के साथ-साथ कुछ अन्य लक्षण भी उत्पन्न होते हैं या दिखाई देते हैं जो निम्न है-
- बुखार का कभी तेज होना कभी मंद होना
- शरीर का कांपना
- कंठ, होठ, मुख और तालु का सुखना
- बुखार के कारण नींद का नहीं आना
- शरीर में रूखापन होना
- पूरे शरीर में दर्द होना
- जीभ का स्वाद बिगड़ जाना
- पेट में आफरा आना
- हर समय मीठा-मीठा दर्द होना
- बुखार के कारण हर समय कमजोरी महसूस होना
आदि लक्षण शरीर में वायु के बढ़ने और कुपित होने के कारण महसूस होते हैं और दिखाई देते हैं। इन लक्षणों के दिखाई देने के बाद जल्द ही शरीर में वायु को बढ़ने से रोकना चाहिए और वात ज्वर की चिकित्सा करनी चाहिए अन्यथा कई दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
आयुर्वेद मतानुसार वात ज्वर की चिकित्सा
शरीर में वायु के कारण बुखार होने पर रोगी की पाचन अग्नि प्रभावित होती है जिसके कारण जठराग्नि कमजोर हो जाती है और रोगी को भूख नहीं लगती तथा बार-बार ज्वर अर्थात बुखार आती रहती है। ऐसे समय में आयुर्वेद मतानुसार रोगी की चिकित्सा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी जठराग्नि बढ़ जाए और बुखार उतर जाए। इसलिए निम्न चिकित्सा करनी चाहिए।
- धनिया, देवदारू, कटेरी और सोंठ- इन चारों का काढ़ा बनाकर वात ज्वर में पीने से निश्चय ही ज्वर नष्ट हो जाता है क्योंकि यह दीपन और पाचन है।
- बेलगिरी, श्योनाक, कुम्भेर, पाढ़ल, अरणी, खिरेंटी, रास्ना, कुलथी और पोहकरमूल – इन 9 दवाओं का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर में होने वाला दर्द और बुखार दोनों नष्ट हो जाते हैं तथा सिर दर्द भी चला जाता है।
- अजवाइन, धनिया, सोंठ और बच का गरमा गरम काढ़ा रात में पीना चाहिए। यह शरीर में वायु बढ़ने के कारण होने वाले दर्द और बुखार दोनों में सुखदायी होता है तथा पाचक अग्नि को भी बढ़ता है।
- नागरमोथा, नेत्रबाला, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, गोखरू, गिलोय, चिरायता, शालिपर्णी, पृश्निपर्णी और पोहकर मूल के इन औषधीय का काढ़ा वात रोगी को पिलाना चाहिए जिससे जल्द ही बुखार से समूल नष्ट हो जाएगी।
- जवासा, कुटकी, सोंठ, धमाशा, कचूर, अडूसा, अरण्य की जड़, पोहकरमूल – इनको मोटा-मोटा कूट कर इनका काढ़ा बनाकर पीने से वात ज्वर में जल्द ही आराम मिलता है।
- सोंठ, नीम की छाल, धमाशा, पाढ़, कचूर, अडूसा और पोहकरमूल की जङ इनको मोटा-मोटा कूट कर इनका काढ़ा पीने से शरीर में दूषित वायु ठीक हो जाती है अर्थात बढी हुई वायु सामान्य मात्रा में आ जाती है और शुद्ध हो जाती है तथा वात ज्वर नष्ट हो जाता है।
सारांश (Conclusion)
इस लेख का सारांश यह है कि वात ज्वर वात विकार की वृद्धि के कारण होने वाली एक प्रकार की बुखार है । यहाँ पर हमने वातज्वर के कारण, लक्षण एवं इसके आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई है । अगर आप भी वातज्वर से ग्रसित हैं तो आपको आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेकर उपचार लेना चाहिए । इसके लिए आप हमारे वैद्य डॉ राम से मोबाइल के माध्यम से सम्पर्क कर सकते हैं ।