जीका सहित अनेक वायरल बुखारों से बचाव के आयुर्वेदिक इलाज
जीका वायरस के लक्षण
१. जीका के लक्षणों का चरकसंहिता में सबसे नजदीकी वर्णन यह हो सकता है, हालांकि आवश्यक नहीं है कि रोगी में सारे लक्षण एक साथ ही मिल जायें|
सन्निपातज्वरस्योर्ध्वमतो वक्ष्यामि लक्षणम्| क्षणे दाहः क्षणे शीतमस्थिसन्धिशिरोरुजा|| सास्रावे कलुषे रक्ते निर्भुग्ने चापि दर्शने| सस्वनौ सरुजौ कर्णौ कण्ठः शूकैरिवावृतः|| तन्द्रा मोहः प्रलापश्च कासः श्वासोऽरुचिर्भ्रमः| परिदग्धा खरस्पर्शा जिह्वा स्रस्ताङ्गता परम्|| ष्ठीवनं रक्तपित्तस्य कफेनोन्मिश्रितस्य च| शिरसो लोठनं तृष्णा निद्रानाशो हृदि व्यथा|| स्वेदमूत्रपुरीषाणां चिराद्दर्शनमल्पशः| कृशत्वं नातिगात्राणां प्रततं कण्ठकूजनम्|| कोठानां श्यावरक्तानां मण्डलानां च दर्शनम्| मूकत्वं स्रोतसां पाको गुरुत्वमुदरस्य च|| (च.चि.3.103-108)
जीका वायरस निदान (कारण या कैसे होता है)
यह जानना आवश्यक है कि कुछ लोग वायरस की चपेट में क्यों आ जाते हैं जबकि अन्य लोग बचे रहते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि में इस प्रश्न का उत्तर बीज-भूमि का सिद्धांत और व्याधिक्षमत्व का सिद्धांत द्वारा स्पष्ट होता है। बीज-भूमि का सिद्धांत स्पष्ट करता है कि जब शरीर उपजाऊ होता है या कहिये कि सम्यक पाचन न होने के कारण जमा हुये आम जैसे विषाक्त पदार्थों के कारण, या पूर्व से ही अन्य रोगों से ग्रसित रहने के कारण, प्रतिरक्षा तंत्र या व्याधिक्षमत्व कमजोर हो जाता है, तब बीज अर्थात वायरस का संक्रमण होते ही आसानी से शरीर की कोशिकाओं में बढ़ने में सक्षम होते हैं। इसके विपरीत जब शरीर आम-रहित होने से व्याधिक्षमत्व मज़बूत रहता है, तो बीज अंकुरित नहीं होते या वायरल संक्रमण होने के बावजूद बीमारी शरीर में आगे नहीं बढ़ती।
इसके साथ ही, यदि शरीर में जठराग्नि सम है तो भोजन के सम्यक पाचन से अंततः बनने वाला ओजस शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। भौतिक स्तर पर ओजस की कमी का तात्पर्य प्रतिरक्षा-शक्ति या व्याधिक्षमत्व की कमी है। मानसिक स्तर पर ओजस की कमी का तात्पर्य मानसिक शक्ति की कमी और अल्पसत्त्व की स्थिति है। इस प्रकार यदि शरीर में रोग-प्रतिरक्षा-शक्ति या व्याधिक्षमत्व दुरुस्त बनाये रखा जाये तो वायरल संक्रमण की स्थिति के बावज़ूद शरीर में जीका सहित किसी वायरल बुखार के कोई लक्षण या बीमारी उत्पन्न संभावना कम ही रहती है।
जीका से बचाव कैसे करें
जीका समेत तमाम वायरल बुखारों से बचाव का पहला कदम शारीर का मज़बूत प्रतिरक्षा तंत्र है। ओजस को दुरुस्त अवस्था में रखकर शरीर की प्रतिरक्षा-शक्ति या व्याधिक्षमत्व बढ़ाकर तमाम तरह के वायरल फीवर या सन्निपातकारी संक्रमणों से बचा जा सकता है। यदि व्यक्ति की पाचन की आग सामान्य है—अर्थात विषमाग्नि नहीं है, अर्थात न सुलग रही है (मन्दाग्नि), न धधक रही है (तीक्ष्णाग्नि)—तो शरीर की प्रतिरक्षा और व्याधिक्षमत्व उच्चकोटि का होने से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं हो पाता है। ऋतुओं के संधिकाल में विशेषकर वर्षाऋतु और शरदऋतु जैसे मौसमों के दौरान, जब वायरल संक्रमण की संभावना अधिक होती है, तब पहले से ही सम्यक ऋतुचर्या के द्वारा आहार-विहार, सद्वृत्त, स्वस्थवृत्त, रसायन प्रयोग उपयोगी रहता है।
यदि व्याधिक्षमत्व कमजोर है तो प्रिवेंटिव रसायन और औषधियों का आयुर्वेदाचार्यों की सलाह के अनुसार प्रयोग करना उपयोगी रहेगा। सबसे पहले कोष्ठशुद्धि से अग्नि सम कीजिये| फिर प्रिवेंटिव औषधियों में कालमेघ, तुलसी, शुंठी, गुडूची की मदद से व्याधिक्षमत्व बढ़ाइये। आयुर्वेद की प्रोप्राइटरी औषधियों जैसे कोल्डकैल और एलरकैल में कालमेघ, तुलसी, शुंठी, गुडूची उपलब्ध हैं। तथापि यदि ये औषधीय टेबलेट्स न मिल पायें तो अपने आयुर्वेदाचार्य की सलाह से इन औषधियों का काढ़ा भी बनाकर लिया जा सकता है। इसके अलावा वायरल संक्रमण के परिप्रेक्ष्य में जिन औषधियों में आधुनिक वैज्ञानिक शोध हुई है, उनमें अश्वगंधा, शुण्ठी, कालीमिर्च, पिप्पली, गुडूची, पुदीना, हल्दी, यष्टिमधु, बिभीतकी, लहसुन, तुलसी, सहजन, चित्रक, कालमेघ, वासा, सप्तचक्र (सैलेसिया रेटीकुलाटा), दूधी (राइटिया टिंक्टोरिया) का क्षीर, आदि प्रमुख हैं।
जीका वायरस के उपचार या इलाज
यदि आप रोग में फंस ही गये हैं तो ठीक होने में थोड़ा देर लगेगी| धैर्य रखिये| जैसा कि आचार्य चरक कहते हैं — चिरात् पाकश्च दोषाणां सन्निपातज्वराकृतिः (च.चि.3.109). The doshas undergo paka after a very long time i.e., conversion into the healthy state of the doshas do not occur early.
चिकित्सा हेतु निम्नलिखित औषधियाँ बेहद कारगर हैं
१. अग्नि सम करने हेतु — Tab. JVN-7
२. व्याधिक्षमत्व बढ़ने हेतु — Tab. Gerlife-M या Gerlife-W
३. उपचार हेतु — Tab.TvishaAmrit; Tab. AllerKal, Tab. ColdKal, संजीवनी वटी आदि
Caution: Herbal medicines should be used only in consultation with your Ayurvedic doctor. (किसी भी जड़ी-बूटी का प्रयोग अपने आयुर्वेदिक डॉक्टर के परामर्श से ही करें !)
योगाभ्यास
हल्के सुक्ष्म आसनों का अभ्यास व नाडी शोधन, कपालभाति, भ्रामरी प्राणायाम व ध्यान का अभ्यास अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगा।
प्राकृतिक चिकित्सा
प्रातः काल एनिमा लेकर अपनी आंतों की सफाई करले. तत्पश्चात पेडू की मिट्टी पट्टी , कुंजल, शंखप्रक्षालन, फलाहार व रसाहार का सेवन करें।
सिरदर्द बनें रहने पर सिर पर ठण्डी पट्टी 5-10 मिनट तक रखें।
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