रज:प्रवर्तनी वटी (रजोनिरोधादौ)
वर्तमान समय में महिलाओ की सबसे बड़ी बढती हुई जो समस्या है वो है मासिकधर्म का अनियमित होते जाना | मासिक धर्म की निरंतरता महिलाओ के अच्छे स्वास्थ्य की पहचान होती है |
यदि किसी महिला का मासिकधर्म अनियमित हो रहा है तो उसके हार्मोनल असामान्यता के लक्षण प्रकट होते है | रज:प्रवर्तनी वटी मासिकधर्म की अनियमितता के उपचार में अहम भूमिका निभाती है | कम आने वाले मासिक धर्म में रज:प्रवर्तनी वटी के फायदे की बात करे तो किसी अन्य आयुर्वेद औषधि भी इससे बेहतर परिणाम देने में सक्षम नही हो सकती |
घटक द्रव्य
टंकणम् हिंगू कासीसं कन्यासाराम समांशकम |कुमारीस्वरसेनैव चणकप्रमिता वटी ||
भाषिता नीलकण्ठेन वन्हि: काष्ठचयम यथा ||
- शुद्ध सुहागा
- हींग
- एलुआ
- हीराकसीस
- घृतकुमारी
निर्माण विधि
उपरोक्त सभी घटक द्रव्यों को मिलाकर या अलग अलग चूर्ण बनाले | उसके पश्च्यात घृतकुमारी स्वरस के साथ तीन दिन में तीन भावना दे कर 250-250 मिग्रा की गोलिया बना ले | बनाई हुई गोलियों को किसी कांच के पात्र में डाल कर रखले |
मासिकधर्म की अनियमितताओ में रज:प्रवर्तनी वटी के फायदे (Raja Pravartini Vati Benefits In Hindi )
रजोरोधम कष्टरजो वेदनाश्च्य तदुद्भ्वा: | रज:प्रवर्तनी नाम वटी तुर्णम विनाशयेत ||
- मासिकधर्म का रूक रूक कर आना
- समय से पहले या बाद में मासिकधर्म का आना |
- मासिकधर्म के समय अत्यधिक दर्द का होना |
- सुस्ती, थकावट और आलस्य का अधिक होना |
- मासिकधर्म के उपद्रव के रूप में आँखों से सम्बंधित समस्याओ में लाभकारी |
- मासिकधर्म के बाद होने वाले पेडू के दर्द में उपयोगी|
रज:प्रवर्तनी वटी का सेवन
रज:प्रवर्तनी वटी का सेवन 1-2 गोली उष्ण जल, कुमारी स्वरस , या क्वाथ के साथ किया जा सकता है |
रज:प्रवर्तनी वटी के नुकसान
चिकित्सक की देखरेख में सेवन करने पर किसी भी प्रकार के उपद्र्व्य की सम्भावना नही रहती है | यदि रोगी स्वम् के आधार पर सेवन करता है तो मात्रा के सही निर्धारण नही होने से आर्तव की अधिकता का खतरा हो सकता है |
विशेष :- किसी भी आयुर्वेद रसोषधि का सेवन बिना चिकित्सक के परामर्श के नही करना चाहिए |
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