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जाने सर्वाइकल, साईटिका एवं स्लिप डिस्क के कारण लक्षण और उपचार योग

जाने सर्वाइकल, साईटिका एवं स्लिप डिस्क के कारण लक्षण और उपचार योग

हमारे शरीर में विधमान त्रिदोष वात,पित्त, कफ हमारी सप्तधातुओं रस, रक्त, माँस, मेद,अस्थि,मज्जा, शुक्र मे वैषम्यावस्था/ दूषित कर रोगोत्पत्ति कर सकते है।ये त्रिदोष वात पित्त कफ वैसे तो सम्पूर्ण शरीर मैं उसी तरह व्याप्त हैं जैसे दही में मक्खन, परन्तु फिर भी मनुष्य शरीर में इनके रहने की विशिष्ट जगहें हैं जहां इनके द्वारा विशेष कार्य सम्पादित होते हैं |

 

वात का मुख्य स्थान :- स्नायुमंडल(nervous system)

पित्त का मुख्य स्थान :-पाचकाग्नि व रक्त संवहन(Digestion and Blood circulatory system)

कफ का मुख्य स्थान :- ओज (जीवनीशक्ति) ओर मलोत्सर्ग(vitality and excretory system)है।

सर्वाइकल, साईटिका एवं स्लिप डिस्क के कारण :-

वात:-पित्त,कफ ,सप्तधातुओं, मल आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने तथा दूषित अणुओं को शरीर से बहार निकालना है। पक्वाशय कमर,जाँघ, कान,अस्थि ओर त्वचा ये सब वात के स्थान है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि वात ही सम्पूर्ण शरीर में जहां जिस तत्व की आवश्यकता होती हैं वहाँ उसे पहुचाता हैं तथा विजातीय द्रव्यों अथवा दूषित अणुओं को शरीर से बाहर निकालती हैं और मनुष्य को स्वस्थ बनाए रखता हैं, किन्तु जब यही बलवान वात रूखे, ठण्डे हल्के ओर कडवे पदार्थ सेवन करने से, लंघन करने से ऊंचे-नीचे मार्ग में चलने से, क्रोध, भय और शोक से,मलमूत्रादि के वेग को रोकने से,चिंता फिक्र करने से प्रकुपित हो जाता हैं तो शरीर के खाली स्त्रोतों या नसो मे भरकर अनेकों प्रकार के एकांग या सर्वांगव्यापी रोग उत्पन्न कर देती हैं।

👉शास्त्रानुसार कुपित वात से 80 प्रकार के रोग पैदा हो सकते हैं यह एक सांकेतिक भाषा है जबकि वास्तविकता में कुपित वात के द्वारा असंख्य रोग पैदा हो सकते है।

इन सबका उल्लेख यहां संभव नहीं है।इसलिए केवल उन्हीं तथ्यों का उल्लेख किया जायेगा जिनका सम्बन्ध वात रोगों से है |

👉कुछ प्रधान वात रोगो जैसे:-Arthritis, sciatica, PID cervical spondylitis, Gout आदि से होगा।

जब वात दोष पित्त या कफ के साथ मिलकर कुपित होता है तो उस स्थिति में रोग अत्यंत पीड़ादायक रूप धारण कर लेता है जिसका उपचार भी बहुत कठिनता से संभव हो पता है| द्विदोषज या त्रिदोषज रोगों की चिकित्सा में अधिक समय लग सकता है|

सर्वाइकल, साईटिका एवं स्लिप डिस्क के लक्षण

👉वात के पाँच प्रकार इस प्रकार है

1.प्राण वायु

2.अपानवायु

3.समान वायु

4.उदानवायु

5.व्यान वायु

रसरक्तादि सप्त धातुओं मे अलग अलग ठहर कर वायु स्थानभेद से अलग अलग रोग उत्पन्न करती हैं जैसे कि जब कुपित वात/वायु हड्डियों में ठहर जाती हैं तो हड्डियों की सन्धियों या जोडो मे तोडऩे जैसी पीडा होती हैं सन्धियों मे दर्द चलता है मांस और बल का क्षय होता है नींद नहीं आती ओर तेज दर्द होता हैं लेकिन जब मज्जा मे दूषित वात स्थिर हो जाता हैं तो सभी लक्षण उपरोक्त ही होते है और पीडा कभी भी शांत नहीं होती ओर निरंतर बढ़ती जाती हैं।

👉कोष्ठाश्रित वायु के कुपित होने से मूत्र ओर विष्ठा(शौच)का अवरोध पैदा होने से वायुगोला, हृदय रोग, बवासीर ओर पसलियों मे दर्द आदि हो जाते हैं।

जब दुष्ट वायु आमाशय मे रहती हैं तो हृदय पसली, पेट ओर नाभि में पीडा होती हैं।

👉पक्वाशय की वायु के कुपित होने से आंते गड-गड की आवाज करती हुई दर्द करती हैं मूत्र ओर मल थोड़े उभरते हैं, पेट फूल जाता हैं ओर पीठ के नीचले हिस्से या त्रिकस्थान मे दर्द होता हैं।

👉गुदा की वायु के कुपित होने से मल,मूत्र ओर अधोवायु रूक जाती हैं दर्द के साथ पेट अफर जाता हैं जिससे पिंडली,कमर,पसली कंधे ओर पीठ में दर्द होता हैं।

👉शिराओं(veins)की वायु कुपित होने से शिराएं सिकुड़ जाती हैं और मोटी हो जाती हैं ओर दर्द पैदा करती हैं।

👉स्नायु(Nerve)की वायु के कुपित होने से शूल(दर्द),आक्षेपक(Cramp)ओर स्तंभ(Freeze)हो जाता हैं।

👉संधिगत वायु के कुपित होने से संधियों मे सूजन,दर्द एवं टूटने जैसी पीडा होती हैं इसे ही संधिवात(Arthritis) कहते है।

👉Cervical Spondylitis :-

👉गर्दन में स्थित कुपित वायु कफावृत होकर गर्दन के पिछले हिस्से में रहने वाली मन्या नाम की शिरा को स्तब्ध कर देती हैं जिससे गर्दन को घुमाना फिराना अत्यंत कष्टदायक होता है इसे ही मन्यास्तम्भ (cervical_spondylitis) नामक रोग कहते है।

 

👉कमर मे रहने वाली वायु जब कुपित होकर कमर से लेकर पैर तक के गुल्फो तक की मोटी नसो को खींचती है तब मरीज लंगडा सा होकर चलता है कभीकभी यह दोनों पैरो को बेकार कर पंगु बना देती हैं साथ ही संधि बंधनों को भी ढीलाकर यह मरीज को थरथरा कर चलने पर विवश कर देती है।

👉सब अंगों में वायु का प्रकोप होने से शिरायें कांपने लगती हैं, अंग टूटने लगते हैं और वेदना के कारण संधियां फटने लगती हैं।

👉कूल्हों की संधियां कमर,पीठ,ऊरू,जांघ ओर पैरो मै स्तब्धता, वेदना के कारण सुई चुभोने जैसी पीडा होतीं है,कूल्है की संधि आदि शिराएं बारम्बार काँपती है,कमर से पैरों के टखने तक का हिस्सा बेकार सा हो जाता हैं इसे ही गृध्रसी(Sciatica)रोग कहते है।

👉कुपित वायु के कारण ही पक्षाघात (Paralysis) भी होता है।

👉इस प्रकार के लक्षण दिखाई दे तो आप हमारी सहायता ले सकते हो हमें खुशी होगी आपको इन लक्षणो से छुटकारा दिलवाकर ।।

सर्वाइकल, साईटिका एवं स्लिप डिस्क के इलाज या उपचार 

किसी प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य/प्राकृतिक चिकित्सक की देखरेख में चिकित्सा लेनी चाहिए

  • सर्वप्रथम एनिमा द्वारा पेट की सफाई करनी चाहिए |
  • पेट की मिट्टी पट्टी व अंग विशेष पर गर्म मिट्टी पट्टी लगाये |
  • अभ्यंग के द्वारा लचीलापन आने से अत्यंत लाभ मिलता है |
  • बस्ति चिकित्सा जैसे अनुवासन निरुह कटिबस्ती जानुबस्ती ग्रीवाबस्ती आदि से आशातीत लाभ होता है|
  • सहन्जन की छाल व सैन्धव लवण का काढ़ा बनाके लेने से शीघ्र लाभ की आशा की जा शक्ति है |
  • योगासन  प्राणायाम व मुद्राओ का नियमित अभ्यास बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है  |
  • मर्म चिकित्सा के द्वारा भी शीघ्र आशातीत लाभ प्राप्त होता है|
  • एरंड तेल में भुनी हुई हरीतकी को सोते समय लेने से शोच खुल के आता है |
  • हमारे द्वारा की जाने वाली बोनसेटिंग के द्वारा चमत्कारिक परिणाम, देखने को मिलते है | परिणाम देखने के लिए यहा क्लिक करे (https://youtu.be/jkkbDTsWZig)

स्लिप डिस्क में योग :-

  • कटिचक्रासन
  • अर्धचक्रासन
  • अर्धमत्सेद्रासन
  • भुजंगासन
  • शलभासन
  • मर्कटासन
  • अश्व्संचलासन
  • वायुमुद्रा
  • कपालभाति
  • योगासन हमेशा एक्सपर्ट की देखरेख में ही करे |

नोट : एक से अधिक दोषों से उत्त्पन्न हुई स्पाइनल समस्या के उपचार में अधिक समय लगना स्वाभाविक होता है क्योकि एक से अधिक दोषों का एक साथ होने के बाद उनकी प्रकुपित क्षमता बढ़ जाती है जिस से रोग मुक्ति में समय लगता है |

धन्यवाद ||

Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

Written by

Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

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