धौति क्रिया क्या है ? धौति क्रिया का अर्थ
धौति का अर्थ है धोना या सफाई करना और क्रिया का अर्थ है कर्म को करना | यह षट्कर्म की एक महत्वपूर्ण क्रिया है | इन्सान अपने बहारी शारीर की सफाई तो रोज करता है लेकिन जो सफाई बहुत जरूरी होती है उसे कर ही नही पाते है इस और सबसे पहले ध्यान देते हुए घेरेण्ड मुनि द्वारा रचित घेरेण्ड संहिता में इसका सम्पूर्ण विवेचन किया है |
धौति क्रिया शरीर शुद्धि की एक क्रिया है जो हमारे आन्तरिक अंगो की सफाई करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | धौति क्रिया द्वारा हमारे पाचन संस्थान की सफाई करने में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है इसके द्वारा आमाशय, छोटी बड़ी आंतो की सफाई अच्छे से हो जाती है | आज हम इस लेख में चर्चा करेंगे धौति के फायदे व प्रकारों के बारे में |
धौति के प्रकार
धौति के चार प्रकार होते है
- अंत धौति –
वातसारं वारिसारं वह्निसारं बहिष्कृतम् |
घटस्य निर्मलार्थाय अंतधौतिचश्तुर्विध्या ||
अंत धौति के चार प्रकार होते है जिनका वर्णन आगे किया जा रहा है –
वातसार धौति – काकच्युवदास्येंन पिबेदायु शनै: शनै:|
चालयेदुदरं पाश्चादवतर्मना रेचयेच्छ्नै: ||
अर्थात काकी मुद्रा या कोवे की चोंच की जैसे मुखाकृति बनाकर धीरे धीरे श्वास को अन्दर खींचना | उसके बाद इस वायु को पेट में चारो और घुमाकर मुह के द्वारा वापस बहार छोड़ देना होता है | इस प्रकार वायु का भक्षण करके पाचन संस्थान की सफाई करना वातसार धोती कहलाती है | वातसार धौति वायु तत्व द्वारा शरीर की सफाई की जाती है |
वातसार धौति करने की विधि
- सबसे पहले धौति करने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करे |
- आप अपने किसी भी अभ्यास में होने वाले ध्यान के आसन में बैठ जाये |
- मुह का आकर कोऊ की चोंच का जैसा बनाकर लम्बा गहरा साँस लेते हुए अपने पेट को वायु से भलीभांति भरले |
- जब पेट अच्छी तरह वायु से भर जाये तब शरीर को ढीला छोड़ कर वायु को पेट में चारो और अच्छे से घुमाये |
- अंत में दोनों नासिका छिद्रों से वायु को धीरे-धीरे बहार निकाले |ये आपका वातसार क्रिया का एक चक्र पूरा हुआ |
वातसार धौति के फायदे
- वातसार धौति के अभ्यास से शरीर की आन्तरिक सफाई हो जाती है |
- कफ दोष का शमन होता है |
- जठराग्नि प्रदीप्त होती है जिसके परिणामस्वरूप पाचन शक्ति सुधरती है |
- अम्लपित्त रोग में लाभकारी क्रिया है |
वातसार धौति में सावधानी या नुकसान
- वातसार धौति हमेशा खाली पेट ही करनी चाहिए |
- इसका अभ्यास स्वम् का बलाबल के आधार पर अधिकतम पांच बार ही करना चाहिए |
- किसी भी प्रकार की शल्यचिकित्सा के पश्च्यात इसका अभ्यास नही करना चाहिए |
- इसका अभ्यास किसी प्रशिक्षित प्राकृतिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए |
वारिसार धौति –
आकठम पुरयेद्वारी वक्त्रेंण च पिबेच्छ्ने:||
चलयेदुदरेंणेव चोदराद्रेचयेदध: ||
वारि शब्द का अर्थ है जल और सार शब्द का अर्थ होता है – तत्व | जल तत्व के माध्यम से अंत:करण अर्थात आन्तरिक अंगो की सफाई करना वारिसार धौति कहलाती है | वारिसार धौति को शंखप्रक्षालन के नाम से भी जाना जाता है |
वारिसार धौति करने की विधि
- सबसे पहले एक बाल्टी में सेंधा नमक मिला हुआ हल्का गुनगुना पानी ले |
- सबसे पहले एक साथ पानी को जल्दी जल्दी पीये जब तक की आपका पेट भर ना जाये | पेट भरने के तुरंत बाद शंखप्रक्षालन के आसानो का अभ्यास करना होता है | शंखप्रक्षालन के आसन ये होते है – सबसे पहले ताड़ासन का अभ्यास करे |
- उसके बाद तिर्यक ताड़ासन का अभ्यास करे |
- तिर्यक ताड़ासन के बाद कटी चक्रासन का अभ्यास करे |
- कटी चक्रासन के बाद तिर्यक भुजंगासन करे |
- और सबसे अंत में उदरकर्षण करे जिसमे पेट को चारो और अच्छे से घुमाया जाता है |
- इन आसनों का अभ्यास तब तक करते रहे जब तक शौच नही आये |
- शौच के बाद दुबारा पानी पीकर शंखप्रक्षालन के आसनों को दोहराते रहे |
- ये क्रिया जब तक दोहराते रहे जब तक की शौच में बिलकुल साफ़ पानी ना आने लग जाये |
- सबसे अंत में जब शौच में पानी साफ़ आने लग जाये तब विरेचन के वेग को रोकने के लिए मुह में जिव्हा पर बीच वाली दो उंगलियों को रगड़ कर कुंजल करे जिससे आपके विरेचन का वेग रुक जायेगा |
वारिसार धौति के फायदे
वारिसार धौति जल तत्व द्वारा शरीर की आन्तरिक शुद्धि के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियाविधि है |
- इसके अभ्यास से सम्पूर्ण पाचन संस्थान की सफाई भलीभांति हो जाती है |
- इसके अभ्यास से आपका शरीर व चेहरा कान्तिमान, ओजस्वी हो जाता है |
- शरीर में जमे हुए जहरीले पदार्थ लगभग पूर्ण रूप से शोधन होकर बहार निकल जाते है |
- वजन कम करने वाले लोगो को इसका अभ्यास जरूर करने चाहिए |
- चर्म रोगों में पित्त का शमन होने से अत्यंत शीघ्र लाभदायक साबित होता है |
वारिसार धौति के अभ्यास में सावधानिया
- इसका अभ्यास किसी योग्य प्राकृतिक चिकित्सक या योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही प्रारम्भ करना चाहिए |
- शंखप्रक्षालन करने के पूर्व की रात को रसाहार के सेवन ही करना चाहिए |
- हृदय रोग या उच्चरक्तचाप में इसका अभ्यास सोंफ के पानी से चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए |
- हाल ही में किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो तो इसके अभ्यास से बचना चाहिए |
- शंखप्रक्षालन के अभ्यास के बाद शरीर नाजुक हो जाता है ऐसे में कोई बहारी काम नही करना चाहिए | साथ ही किसी भी प्रकार की आधुनिक दवाओं के सेवन से बचना चाहिए |
- गर्भवती महिलाओ को इसका अभ्यास नही करना चाहिए वरना गर्भपात हो सकता है | अभ्यास करने के बाद रसाहार या फलाहार का सेवन अगले 24 घंटे तक करना श्रेष्ठ रहता है |
वह्निसार धौति या अग्निसार धौति –
“नाभिग्रंथिम मेरुपृष्ठे शतवारच कारयेत्|”
अर्थात नाभि को मेरुदंड के पिछले हिस्से तक सो बार मिलाने का विधान बताया गया है | इस क्रिया में सांस को पूरा बहार निकाल कर नाभि वाले भाग को अन्दर बहार करना ही अग्निसार धौति कहलाती है |
वह्नि का अर्थ होता है अग्नि और सार का तत्व अर्थात शरीर शुद्धि जिस क्रिया को अग्नि द्वारा किया जाये उसे वह्निसार धौति के नाम से जाना जाता है | इसमे अग्नि की सहायता से आन्तरिक अंगो की सफाई की जाती है |
अग्निसार धौति करने की विधि
- सबसे पहले अपने आपको अग्निसार क्रिया करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करे |
- उसके बाद शांत मन से वज्रासन या सिंहासन में बैठ जाये |
- अपनी रीढ़ की हड्डी को एकदम सीधा रखे |
- अपने दोनों हाथो को अपने घुटनों पर टिकाये |
- उसके बाद अपनी जिव्हा को बहार निकालते हुए आराम से पूरा सांस बहार छोड़ दे |
- पूरा सांस बहार छोड़ देने के बाद उसी अवस्था में अपने पेट को अन्दर बहार करे ध्यान रहे अपनी नाभि को अधिक से अधिक पृष्ठ भाग तक ले जाने का अभ्यास करे |
- एक चक्र पूरा होने के बाद आराम करने के कुछ देर बाद अपने बलाबल के आधार पर इसे दोहराया भी जा सकता है |
अग्निसार धौति के फायदे
- इसके अभ्यास से जठराग्नि तेज होती है |
- जठराग्नि मजबूत होने से पाचक रसो पर नियन्त्रण अच्छा हो जाता है जिससे पाचन सम्बन्धी समस्याओ का निस्तारण हो जाता है |
- जठराग्नि बलवान होने से अम्लीयता कम हो जाती है और शारीर में क्षारीयता का लेवल सामान्य होने लगता है |
- स्ट्रेस मनेजमेंट के लिए उत्तम क्रिया मानी जाती है |
- इसके नियमित अभ्यास से कुण्डलिनी जागरण में भी सहायता मिलती है |
- अग्निसार के अभ्यास से पेट की माँसपेशिया मजबूत हो जाती है |
अग्निसार धौति में सावधानिया
- जैसी सभी शोधन क्रियाओ का अभ्यास खली पेट किया जाता है वैसे ही इसका अभ्यास भी प्रात:काल खाली पेट ही करना चाहिए |
- उच्चरक्तचाप व् हृदय रोगियों को इसका अभ्यास नही करना चाहिए |
- पेप्टिक उल्सर, हर्निया, श्वसन संस्थान से सम्बन्धी रोगियों को इसका अभ्यास नही करना चाहिए |
- प्राकृतिक चिकित्सक की देखरेख में ही इसका अभ्यास करे |
बहिष्कृत धौति –
काकीमुद्रां शोधयित्वा पुरयेदुदरं मरुत |
धारयेदर्ध्दयामंतु चालयेदधोवतर्मना ||
कोऊ के जैसे होठो की आकृति बनाकर धीरे धीरे मुह से सांस लेते हुए आधे पहर तक धारण करके रखना उसके बाद गुदमार्ग से वायु को निकलना ही बहिष्कृत धौति है | वर्तमान समय के सुविधा भोगो योगियों या साधको के लिए इसका अभ्यास मुश्किल हो जाता है | जबकि वास्तविक योगी के लिए यह शरीर शोधन की श्रेष्ठ क्रिया है |
पेट में वायु को भर कर गुदमार्ग से वायु को बहार निकालते है |
बहिष्कृत धौति कैसे की जाती है
- बहिष्कृत धौति सरल क्रिया नही है इसलिए किसी योग्य प्राकृतिक चिकित्सक के सानिध्य में ही इस क्रिया का अभ्यास करना चाहिए |
- सबसे पहले अपने आप को मानसिक रूप से बहिष्कृत धौति करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए |
उसके बाद किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाये |
- दोनों हाथो को अपने घुटनों पर टिकाये |
- काकी मुद्रा में वायु का धीरे धीरे पान करे
- उसके बाद एक घंटे तक पान की हुई वायु को पेट के अन्दर ही रोक कर रखे |
- अंत में वायु को गुदामार्ग से बहार निकाल दे | और कुछ समय आराम करे |
बहिष्कृत धौति के फायदे
- सभी प्रकार के उदर सम्बन्धी विकार दूर होते है |
- शरीर कान्तिमान हो जाता है |
- शरीर में हल्कापन आने से कुण्डलिनी शक्ति जागरण होने में लाभकारी है |
- प्रजनन संस्थान को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है |
सावधानिया
बहिष्कृत धौति का अभ्यास वही करे जिसको 1 घंटे सांस रोकने का अभ्यास हो | इसका अभ्यास एक वास्तविक योगी ही कर सकता है | बिना प्राक्रतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन के इसका अभ्यास भूल के भी नही करे |
दंत धौति
दंतमूलं जिव्हामूलं रंधच कर्ण युग्मयो: |
कपालरन्धम पचेते दन्तधौतिम विधीयते ||
दंतधौति, में दांत जीभ, कान और कपाल रंध्रो के शोधन किया जाता है |
दंत धौति से मुख गुहा और गले से उपरी भाग की सफाई करने का तरीका है जिसके द्वारा हमारे उर्ध्वांग अंगो की सफाई की जाती है | इसके भी चार भेद होते है |
- जिव्हा मूल – हाथो की उंगलियों से धीरे धीरे जिव्हा को रगड़ते हुए सफाई करना जिव्हा मूल धौति है |
- दन्तमूल – उंगलियों से धीरे धीरे हल्के हाथो से दांतों और मसूड़ो को रगड़कर साफ़ करना ही दन्तमूल धौति है |
- कपाल रन्ध्र – अपने हाथो से कपाल व मुख मंडल की हल्के हल्के हाथो से मालिश करना ही कपाल रन्ध्र धौति है |
- कर्ण रन्ध्र – इसमे सबसे छोटी ऊँगली पर तेल, घी, या पानी लगा कर धीरे धीरे दोनों कानो में अन्दर डालकर घुमाकर कानो की सफाई करना ही कर्ण रन्ध्र धोती है |
हृदय धौति
हृदय धौति के द्वारा पाचन संस्थान के सभी आन्तरिक अंगो की सफाई की जाती है |
- दंड धौति
रम्भादण्ड हरिद्रादण्डम् वेत्रदण्डम् तैथेव च |
ह्न्मध्ये चालयित्वा तू पुन: प्रत्याहरेच्छनै ||
अर्थात् एक हाथ चार अंगुल लम्बाई के केले के पत्ते के मध्य का हिस्सा या हल्दी पत्र के मध्य वाला भाग को दंतधावनी अर्थात दातुन पर कच्चे सूत में मोम लगाकर तैयार करले | प्रारम्भ में इसकी मोटाइ कनिष्क अंगुली के जितनी हो उसके बाद अंगूठे जितनी हो को धीरे-धीरे मुह में प्रवेश करवाए गले में जाने के बाद ये स्वत: ही बिना अधिक मेहनत के ही अन्दर डालते हुए नाभि तक पहुंच जाता है | इसके बाद पेट को अन्दर बहार घुमाते हुए एक चक्र में घुमाये |
दण्डधौति करने की विधि – 1
प्राचीन समय में दण्ड धौति के लिए केले के पत्ते और हल्दी के पत्तो के बीच वाले मुलायम भाग का प्रयोग किया जाता था किन्तु वर्तमान में रबड़ की बनी हुई दंड धौति का प्रयोग किया जाता है | बाजार में मिलने वाली रबड़ वाली दंड धौति को उबालकर साफ़ जरूर करले |
- सबसे पहले डेड से दो लीटर सेंधा नमक मिला हुआ पानी पियें |
- उसके बाद प्राकृतिक चिकित्सक या योग प्रिशिक्षक के बताये अनुसार धीरे धीरे दंड को मुख मार्ग से अन्दर डाले |
- जब दंड अमाशय तक पहुंचने का अहसास हो जाये तो सामने की और थोडा झुक जाये |
- सामने झुकने के बाद दंड से पानी बहार आने लगेगा |
- पानी आना बंद हो जाये उसके बाद धीरे-धीरे दंड को बहार निकाल दे |
- दंड को बहार निकालने के बाद गले में आने वाले कफ को भलीभांति साफ़ करले |
दंड धौति के फायदे
- शरीर में जमा अतिरिक्त कफ और पित्त को निकालने में उपयोगी |
- एसिडिटी वाले रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक शोधन की क्रिया है |
- सांस रोग में लाभदायक है
वमन धौति / कुंजल धौति
वमन धौति को गजकरणी और कुंजल क्रिया के नाम से भी जाना जाता है | आम भाषा में इसे उल्टी करना कहा जाता है | वमन धौति खाली पेट ही करनी चाहिए | वमन धौति या कुंजल क्रिया करने के लिए 2-3 लीटर पानी को गुनगुना करले और उसमे 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर पीना शुरू करे जब तक आपका पेट गले तक ना भर जाये पानी को लगातार पिटे रहे | जब पानी गले तक भर जाये तो | सामने की और 45 डिग्री तक झुक जाये जिससे थोड़ी देर में आपको वमन का वेग आना प्रारम्भ हो जायेगा | कई बार साधक व्यक्ति को वेग नही आ पाता है ऐसे में वो बीच वाली दो उंगलियों को जिव्हा पर रगड़ने से वमन का वेग आ जाता है |
सेंधा नमक – धौति के समय पानी में सेंधा नमक डालने के दो पक्ष होते है – 1. सफाई अच्छे से हो जाती है |
2. सेंधा नमक डालने से पानी का के पाचन होने में थोडा वक्त लगता है और पाचन होने की प्रक्रिया से पहले ही वमन धौति द्वारा पिए हुए पानी द्वारा आन्तरिक अंगो की सफाई करके बहार निकला दिया जाता है |
कुंजल के फायदे
- शरीर में जमे जहरीले पदार्थो को शरीर से बहार निकालने की श्रेष्ठ क्रिया विधि है |
- अस्थमा या सांस से सम्बन्धी रोगियों के लिए उत्तम |
- चर्म रोगों में लाभकारी |
- अजीर्ण में लाभदायक |
- हाइपर एसिडिटी में फायदेमंद |
- बढ़े हुए कफ का शमन करने में फायदेमंद |
कुंजल के अभ्यास में सावधानिया
- हर्निया वाले रोगियों को कुंजल का अभ्यास नही करना चाहिए |
- पिछले तीन महीनो में किसी भी प्रकार की सर्जरी हुई हो तो इसका अभ्यास नही करे |
- कमर दर्द के समस्या वाले व्यक्तियों को इसके अभ्यास से बचना चाहिए |
बिना किसी प्रशिक्षक की देखरेख के अभ्यास ना करे |
वस्त्र धौति
वस्त्र अर्थात कपड़े के द्वारा की जाने वाली आन्तरिक सफाई वस्त्र धौति कहलाती है |
वस्त्र धौति कैसे करे
- चार अंगुल चौड़ा और 3-4 मीटर लम्बा सूती कपड़ा ले |
- उसे पानी में डुबोकर गिला करले |
- मुह में डालकर ग्रास की तरह उसे धीरे-धीरे निगलते जाये |
- बीच बीच में थोडा-थोडा पानी पीते रहे |
- जब कपड़ा पूरा अन्दर चला जाये और अंतिम छोर बचे तो धीरे-धीरे करके वापस निकाल ले |
वस्त्र धौति के फायदे
- कफ दोषों में अत्यंत लाभकारी क्रिया है |
- अस्थमा/दमा के रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी अभ्यास है |
- इसका अभ्यास जठराग्निवर्धनं के लिए बहुत ही उत्तम है |
- चर्म रोगों में श्रेष्ठ है |
- पेट से सम्बन्धी रोगों में अच्छे परिणाम मिलते है |
वस्त्र धौति में सावधानिया
- वस्त्र धोती के अभ्यास को 5 मिनट के समयांतराल में पूरा कर लेना चाहिए |
- 5 मिनट के बाद धौति वस्त्र आंतो की और जाने की सम्भावना रहती है |
- कपड़े को वापस निकलते समय जिव्हा से सटा कर रखे |
मूलशोधन
मूल शोधनम्र् अर्थात गुदा की सफाई करना |
अपानक्रूरता तवद्यावन्मूलं न शोधयेत् |
तस्मात् सर्व प्रयत्नेन मूलशोधनमाचरेत ||
अर्थात मध्यमा अंगुली से पानी द्वारा बार-बार गुदमार्ग की सफाई या धोना ही मूलशोधन होता है | या
हल्दी की मुलायम जड़ या अनामिका ऊँगली में घी लगाकर गुदामार्ग की सफाई करने से रोगाणुओ की सफाई भलीभांति हो जाती है |
मूल शोधन के फायदे
- पाचन संस्थान के रोगों के लिए उत्तम |
- कब्ज वाले रोगियों के लिए अच्छा अभ्यास है |
- इसके अभ्यास से अपान वायु सम अवस्था में आती है |
सावधानिया
- अंगुली के सभी नाखुनो को ठीक तरह से काट ले |
- बवासीर वाले रोगियों को गुदमार्ग में ऊँगली डालते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए |
उपरोक्त किसी भी प्रकार की शोधन क्रिया का अभ्यास योग प्रशिक्षक या प्राकृतिक चिकित्सक की देखरेख में ही करे | बिना पूर्व अभ्यास के किसी भी क्रिया का अभ्यास ना करे | धन्यवाद
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धन्यवाद !