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रक्तपित

रक्तपित रोग के कारण, लक्षण व आयुर्वेदिक औषधियां द्वारा चिकित्सा

रक्तपित रोग : अनियमित आहार- विहार और कड़वे तथा तीखे पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण शरीर में पित्त अत्यंत उष्ण होकर शरीर से निकलने लगता है। इसे ही पित्त रोग कहते हैं। इस पित्त रोग के कारण शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे- रक्त पित्त, अम्लपित आदि। 

रक्तपित

लगातार गर्म पदार्थों का सेवन करने के कारण तथा धूप या आग का अधिक सेवन करने के कारण शरीर में पित्त दूषित हो जाता है या आवश्यकता से अधिक बढ़ जाता है। आयुर्वेद में इसे पित्त का कुपित हो जाना कहते हैं। पित्त कुपित होकर अनेक रोग उत्पन्न करता है जिनमें से रक्तपित्त और अम्लपित मुख्य रोग है।

आज इस आर्टिकल में हम आपके रक्त पित्त रोग होने के कारण, लक्षण तथा आयुर्वेदिक औषधियां द्वारा रक्तपित रोग की चिकित्सा के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक देंगे। अतः आप इस आर्टिकल को अंतिम तक अवश्य पढ़ें। 

रक्तपित्त रोग क्या है? (What is Raktapitta) 

सामान्य भाषा में जाने तो रक्त पित्त होने पर शरीर के किसी भी हिस्से से असमय और अचानक रक्त का स्राव होने लगता है। आयुर्वेद के अनुसार रक्त पित्त रोग होने पर शरीर की इंद्रियों एवं रोम से रक्त का स्राव होने लगता है। यदि रक्त पित्त रोग में कफ की अधिकता होती है, तो यह अधोगामी होता है अर्थात गुदा मार्ग द्वारा रक्त का स्राव होने लगता है और यदि वायु की अधिकता होती है तो    ऊर्ध्वगामी होता है अर्थात मुख द्वारा कफ के साथ रक्त का स्राव होने लगता है। यह रोग मुख्यतः तीन प्रकार का होता है- वातज रक्तपित, पित्तज रक्तपित एवं कफज रक्तपित। 

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रक्तपित्त रोग होने के कारण (Causes of Raktapitta)

रक्तपित होने का मुख्य कारण शरीर में पित्त का बढ़ना है और यह पित्त निम्न कारणों से बढ़ता है। 

  • अनियमित आहार विहार का सेवन करना
  • अधिक सवारी करना
  • धूप या आग का अधिक सेवन करना
  • धूम्रपान करना
  • अधिक क्रोध करना
  • अधिक सहवास करना 
  • मांसाहारी पदार्थों का अधिक सेवन करना
  • अधिक खट्टे और तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन करना

आदि कारणों से शरीर में रक्त और पित्त कुपित हो जाता है। जिससे रक्त पित्त रोग उत्पन्न होता है। 

रक्तपित्त रोग के लक्षण (Symptoms of Raktapitta)

जैसा कि हमने पहले बताया कि रक्त पित्त रोग तीन प्रकार का होता है। वातज, पित्तज और कफज। इन तीनों रोगों में अलग-अलग प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं जो इस प्रकार है-

  1. वातज- वातज रक्त पित्त होने पर सांस में लोहे की-सी गंध आती है। अर्थात शरीर में वात अधिक बढ़ने के कारण रक्त दूषित हो जाए तो उल्टी, घुटन, शीतल पदार्थों को खाने की इच्छा आदि लक्षण उत्पन होते है।
  2.  पित्तज – पित्तज रक्तपित होने पर खून गाढ़ा, काला, अंगारे जैसा या गौमूत्र जैसा होता है।
  3. कफज- इसमें खून चिकना, गाढ़ा और पाण्डुवर्ण अर्थात पीले रंग का हो जाता है।

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य लक्षण है जो रक्त पित्त रोग होने पर दिखाई देते हैं। जैसे-

  • दुर्बलता 
  • बुखार 
  • वमन (उल्टी) 
  • जलन  
  • बेहोशी 
  • थकान 
  • नकसीर आना
  • अधिक प्यास लगना 
  • बेचैनी होना 
  • भोजन के प्रति अरुचि 

आदि लक्षण रक्त पित्त के रोगी में नजर आते हैं। 

रक्तपित्त रोग की आयुर्वेदिक औषधियां द्वारा चिकित्सा

  1. यदि रक्त पित्त रोग में नाक से खून बह रहा हो तो जल में मिश्री मिलाकर पीने से नाक से खून का गिरना बंद हो जाता है। 
  2. दूध और घी में मिश्री मिलाकर पीने से नाक से खून का गिरना बंद हो जाता है। 
  3. दो रत्ती शुद्ध अफीम खाने से थूक में खून आना बंद हो जाता है। 
  4. गाय का ताजा घी नाक में टपकाने से भी नाक से खून गिरना बंद हो जाता है। 
  5. शीतल जल सिर पर डालने और इसबगोल सिरके में भिगोकर माथे पर लगाने से नकसीर में आराम मिलता है। 
  6. अडूसे के पत्तों का रस, गूलर के फलों का रस और लाख का भिगोया हुआ पानी – इनको मिलाकर पीने से शरीर के किसी भी हिस्से से खून का गिरना बंद हो जाता है। 
  7. 1 ग्राम फिटकरी का महीन चूर्ण दूध में मिलाकर पीने से खून गिरना तत्काल बंद हो जाता है। 
  8. लाल चंदन, बेलगिरी, अतीस, कुङे की छाल और बबूल का गोंद – यह सब मिलाकर 2 तोला ले लें। अब बकरी का 16 तोला दूध और एक सेर पानी लेकर उसमें यह सब खूब अच्छी तरह पका लें। जब दूध मात्र रह जाए तब छान कर रोगी को पिलाएं। इस दवा से गुदा, योनि और लिंग से खून गिरना बंद हो जाता है। 
  9. शतावरी और गोखरू की जड़ 2 तोला, बकरी का दूध 16 तोला और पानी एक सेर मिला कर पका लें। दूध मात्र रहने पर छान कर रोगी को पिलाने से योनि से खून गिरना बंद हो जाता है। 
  10. पिठवन, मुगवन और माषाणी कुल 2तोला, बकरी का दूध 16 तोला और जल एक सेर लेकर पका लें। दूध मात्रा रहने पर छान कर पिलाने से योनि से खून गिरना बंद हो जाता है। 
  11. आंवलो को घी में भूनकर और काँजी में पीसकर मस्तक पर लगाने से नाक से खून गिरना बंद हो जाता है। अगर कांजी न हो तो बिना काँजी में पीसकर ही लगा दें। 
  12. अडूसे में फूलप्रियंगू, मिट्टी अंजन, लोध और शहद मिलाकर पीने से रक्तपित नष्ट हो जाता है। 
  13. अडूसे के काढे़ में शहद और मिश्री मिलाकर पीने से रक्तपित में फौरन ही आराम हो जाता है। 
  14. मिश्री डाल कर बकरी का दूध पीने से रक्तपित या खून गिरना बंद हो जाता है। 
  15. नारियल का पानी पीने से रक्तपित में योनि और नाक दोनों से ही खून गिरना बंद हो जाता है। 
  16. अनार के फूलों का रस नाक में डालने से नाक से नकसीर गिरना बंद हो जाती है। 
  17. मिट्टी, दूब और आंवला इनको पीस कर सिर पर लेप करने से नाक से खून गिरना बंद हो जाता है। 
  18. आंवले का मुरब्बा प्रतिदिन सेवन करने से भी रक्त पित्त रोग में आराम मिलता है। 
  19. जो का आटा, मुल्तानी मिट्टी, धनिया, इसबगोल, आंवला और गेरू इन सबको बराबर पानी के साथ पीसकर माथे पर लगाने से नकसीर आना बंद हो जाती है। 
  20. कहरुवे को पीस कर नाक में सुंघने अथवा कहरुवे को पानी में पका कर सिर पर लेप करने से नाक से खून गिरना बंद हो जाता है और दिमाग से फेफड़ों में आने वाले दोष रुक जाते हैं। 

Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

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Dr Ramhari Meena

Founder & CEO - Shri Dayal Natural Spine Care. Chairmen - Divya Dayal Foundation (Trust) Founder & CEO - DrFindu Wellness

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