शिरोधारा एक – प्राकृतिक ध्यान सोन्दर्यवर्द्धक रोगमुक्त प्रक्रिया , शिरोधारा के फायदे
शिरोधारा क्या है ?
शिरोधारा को आयुर्वेद ग्रंथो में शिरोसेक के नाम से भी जाना जाता है | यह एक अतिप्राचीन आरोग्य विधि है जिसका प्रयोग लगभग 5-6 हजार वर्षो से हमारे वैद्यो द्वारा किया जाता रहा है | आयुर्वेद ग्रंथो के अनुसार यह वात एवम पित्त को संतुलित करता है इस प्रक्रिया में रोगानुसार अलग अलग ओषधियो का चयन किया जाता है |
इस प्रिक्रिया में ओषध द्रव को द्रोणी के माध्यम से एक धारा के रूप में आज्ञाचक्र पर गिराया जाता है जिससे एक असीम शांति का अनुभव होता है | परिणामस्वरूप गर्दन के उपर के रोगों में चमत्कारिक लाभ होता है | शिरोधारा को प्राकृतिक ध्यान का सबसे उपयुक्त माध्यम माना जाता है |
मानसिक रोगों में इसका प्रयोग मील का पत्थर साबित होता है, या यह कहे की रामबाण का काम करता है | रोगानुसार चयन किये गये ओषध द्रव गर्म/ठंडा को जब शिर पर एक लयबद्ध तरीके से गिराया जाता है जिस से कम्पन्न की उत्पत्ति होती है जिसका सीधा प्रभाव हमारे तंत्रिका तंत्र से होता हुआ प्रमस्तिक मेरु द्रव (CEREBROSPINAL FLUID ) पर पड़ता है जिसके कारण थैलमेस व प्रमस्तिष्क का अग्र भाग सक्रिय हो जाता है |
जिससे हमारे दिमाग में चल रहे व्यंग स्वत: ही शांत होकर नींद आने लगती है| क्योकि इसकी धारा रोगी के आज्ञाचक्र पर लगातार गिराया जाता है |जिससे रोगी का ध्यान आज्ञाचक्र पर रहता है | जिससे रोगी का दिमाग /चिंतन बाहरी आवरण से आन्तरिक आवरण में स्वत: ही आ जाता है और दिमाग में चल रहे सभी व्यंग शांत होकर रोगी को शांति का अनुभव होता है | शिरोधारा स्वस्थ व्यक्ति को भी आरोग्य बने रहने के लिए लेते रहना चाहिए |
शिरोधारा के प्रकार
तेल धारा : बला महानारायण धान्वन्तरम आदि ओषध युक्त तेल का रोगानुसार चयन कर शिर पर धारा के रूप में गिराया जाता है |
कषाय धारा : ओषध द्रव्यों को क्वाथ के रूप में तैयार किया जाता है |
तक्रधारा : ओषध द्रव्यों को छाछ में तैयार किया जाता है|
क्षीर धारा : गोदुग्ध में नारियल पानी आदि को मिलाकर तैयार किया जाता है |
जलधारा : उष्ण जल से तैयार की जाती है |
शिरोधारा में ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बाते
- शिरोधारा हमेशा प्रशिक्षित व्यक्ति की देखरेख में ही करवाए |
- शिरोधारा करने वाले वैध /उपवैध को शिरोधारा के सम्यक व हीन योग्य के लक्षणों का मालूम होने से रोगी को हानि नही होगी |
- धारा क्रम लगातार चलता रहे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए |
- शिरोधारा से पूर्व रोगी को कोई भारी खाना नही देना चाहिए |
- धारा कर्म के समय रोगी से बात ना करे |
- शिरोधारा का समय 45 मिनट से 60 मिनट तक का होता है
शिरोधारा कैसे करे
इस प्रक्रिया में एक पात्र लिया जाता है जिसे द्रोणी कहा जाता है जिसमे एक छेद करके उसमे कोटन/कपड़ा डाल के निचे की और लटका दिया जाता है जिसके माध्यम से ओषध द्रव को सिर पर चार उंगुल ऊपर से लगातार गिराया जाता है |प्रारंभ में रोगी के बालो में हाथ डालते रहे जिस से बालो के अंदर तक धारा बहती रहेगी |
गर्म/ठंडी धारा कर रहे हो तो उसके तापमान का विशेष ध्यान रखना चाहिए | शिरोधारा करवा रहे व्यक्ति की आँखों में ओषध द्रव ना जाये इस हेतु उसकी आँखों के उपरी हिस्से आइब्रो पर कपड़े से लपेट लगा कर डाट/रोक लगा दी जाती और आँखों पर गुलाबजल में भीगोकर रुई को रख दिया जाता है जिस से रोगी को असीम शांति का अनुभव होता है |
शिरोधारा सोन्दर्यवर्द्धक भी
शिरोधारा का हमारे शरीर की सम्पूर्ण तंत्रिका तंत्र पर स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है किन्तु हमारे चेहरे की तंत्रिकाओ पर रक्त संचार भलीभांति होने से हमारे मुह की त्वचा पर और सिर के बालो पर अत्यधिक प्रभाव दिखाई देता है जिससे शिरोधारा लेने वाला व्यक्ति पहले से खुबसूरत दिखता है |
शिरोधारा के फायदे / शिरोधारा के लाभ ( benefits of shirodhara )
- अनिद्रा
- तनाव
- मिर्गी
- मन्यास्त्म्भ ( गर्दन दर्द )
- पक्षाघात (लकवा )
- शिर:शूल(सभी प्रकार के शिरोरोगो में लाभकारी )
- माइग्रेन
- सभी प्रकार के नेत्र दोषों
- नासा रोग
- गले के रोग
- याददास्त का कमजोर
- खालित्य (गंजापन )
- पालित्य (बालो का पकना )
- मोटापा
- स्किन की चमक
- शुक्र धातु पुष्ट
- सहवास की इच्छा होना
- बुढ़ापा रोधी
- शरीर मजबूत बनता है |
- सम्पूर्ण तंत्रिका तन्त्र को मजबूत बनती है
- रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है
- रक्तचाप सामान्य होता है
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धन्यवाद |